Story behind the story
आज तबीयत ठीक नहीं लग रही थी लेकिन काम पर तो जाना था, हां स्टोरी को लेकर एक्साइटमेंट भी होता है। एयर प्यूरिफायर के रियालिटी चेक के लिए निकली। स्टोरी 1 बजे तक हो जानी थी। मैं केंट के ऑफिस गई कंपनी का वर्जन लेना था। मैंने देखा है हमेशा प्यार से नहीं होता मतलब ये नहीं धमका डराकर करो, मतलब ये की पत्रकार हूं तो पीआर नहीं करूंगी, हक से कहूंगी जवाब देना होगा।
केंट के हेड ऑफिस जाकर मैंने कुछ ऐसा ही किया। मैं लगातार संपर्क कर रही थी, लेकिन सब घुमा रहे थे। मैं पागल हूं। मैं हेड ऑफिस गई और रिसेप्शन से फोन घुमाया। तो सारे लोग हिल गए। आप ऐसे कैसे आ गईं, यहां ऐसे कोई बात नहीं करता। मैंने भी खूब सुनाया और सही बात रखी। डरकर मुझे अंदर बुलाया और आधे घंटे के अंदर चेयरमैन का इंटरव्यू मिला। मैंने गलत ढंग से कुछ नहीं किया और ना ही कहा। मैंने तो बस कहा कि हमें जवाब पाने का हक है। हम लगातार जनता के लिए काम करते हैं, स्टोरीज करते हैं उन्हें बताते हैं कि वो क्या खरीदें क्या नहीं। आप सच्चे हैं तो घुमाने का हक नहीं है आपको। हमें जवाब दें।
इस दौरान एक प्यारा सा नजारा। रोज की तरह नजरों ने देख लिया। एक बूढ़ा इंसान भीख मांग रहा था। हर कोई बाजार में चलते ऐसे भिखारी को 2 - 4 रुपए देते हैं या भगा देते हैं, बुरा सुलूक करते हैं। पता नहीं वो कौन था। मेरी नजर पड़ी और वो गायब। उसने 200 का नोट उस बुजुर्ग को दिया। मुझे आश्चर्य़ लगा। इसलिए नहीं 200 रुपए दिए उसने बल्कि बड़ी बात है ऐसी सोच कोई रखता है आज भी।
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