Story behind the story


कई बार स्टोरी के लिए लगता है आसानी से कॉंटैक्ट हो जाएंगे, वर्जन मिल जाएगा या जहां शॉट बनाना है वहां भी आसानी से हो जाएगा। सिंपल ही तो है। इसलिए हम एकदम से स्पॉट पर पहुंच जाते हैं और पहले से कुछ खास तैयारी नहीं करते। ऐसा सोचकर निकल जाते हैं कि यहां तो काम हो जाएगा आसानी से। कोई अपॉयंटमेंट नहीं चाहिए होगी। 

लेकिन उसी आसानी सी चीज में हमें सबसे ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। शॉटस नहीं मिलते, वर्जन के लिए परमिशन या कोई और नाटक है। तब लगता है अरे ये तो हमारे दायरे में थी इसको पाने के लिए भी मशक्कत। इतने पापड़ बेलने पड़े। इतने मेल और इतने नाटक हुए। रिपोर्टिंग में कुछ भी मुश्किल नहीं तो कुछ भी आसान नहीं। हर चीज को हर स्टोरी को गंभीतता से लेना चाहिए। 

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