story behind the story
कभी कभी रिपोर्टिग में कुछ करने का मन नहीं करता। मतलब कोई खबर, कोई ब्रेकिंग कोई स्टोरी नहीं। बस चुपचाप बैठ जाएं। कई बार खबरें निकालने के लिए मंत्रालय जाने का दिल नहीं करता, अपने कॉन्टैक्ट खंगालने का दिल नहीं करता। चाय पीएं, अधिकारी के साथ बैठें, इधर उधर जाएं कुछ रिपोर्ट्स निकालें।
कभी कभी सब बेकार सा लगता है, अंदर से थकन सी होती है। खबरों के लिए कैसे कैसे पापड़ बेलने पड़ते हैं। अगर ब्रेकिंग है तो मजे वरना किसी और को अगर मिल गई तो सब बेकार। कहां कमी रह गई, मुझसे खबर मिस हो गई बस पूरे दिन वही सब।
खैर मेन मुद्दा ये नहीं बल्कि ये है कि खबरें हर जगह है बहुत है चारों तरफ है, बस नजरों को घुमाने की देर है, लेकिन एक साथ आप चीज में खबर या स्टोरी नहीं निकाल सकते, तब लगता है बस छोड़ दो। कुछ चीजों को आम रहने दो, नजर अंदाज कर दो।
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