Story behind the story
एक फीमेल जर्नलिस्ट और एक मेल जर्नलिस्ट क्या कुछ ज्यादा फर्क है, नहीं काम का बिल्कुल नहीं कहूंगी। क्योंकि मेल जर्नलिस्ट जिस तरह से धूप में भागते हैं हम भी भागती हैं। कई बार हम ज्यादा करती हैं। खबर और स्टोरी के मामले में हम कहीं पीछे नहीं हैं। नए नए आइडियाज निकालना यहां जाना वहां जाना, घर देखना, खुद को संभालना और अगर फैमिली है तो उसे भी मैनेज करना। मुझे लगता है एक फीमेल जर्नलिस्ट के सफर बहुत ज्यादा कठिन है ।
ये कठिनाई तो फिर भी पार की जाती है। लेकिन जब बारी सच में मेल फीमेल के भेद की आती है तब क्या। सबसे बड़ी चुनौती ही ये है कि हम एक फीमेल हैं। हर कदम पर एक अलग चुनौती। आफिस से बाहर तक, अफसरों के पास, रोड पर, गाड़ी में ऑटो में, खबर निकालते वक्त, कहीं भी एक लड़की को बख्शा नहीं जाता। वहां पर जर्नलिस्ट नहीं फीमेल जर्नलिस्ट के हिसाब से देखा जाता है और बस।
कई बार इतनी बेकार सी फीलिंग आती है। अब तक कुछ नहीं बदला। रोजाना शाम या रात को घर लौटने के बाद एहसास होता है फीमेल जर्नलिस्ट जिसे बेस्ट देना है काम में, स्टोरी निकालनी है, काम बेहतर करना है, खुद को स्ट्रांग रखना है साथ ही इन सब चीजों को झेलना है। चलो डायरेक्ट बात करते हैं बेशर्मी, आंखों की गंदगी और कई बार फीजिकल टच। इन सबका सामना करने के बाद भी वो काम करती है और बेस्ट फीमेल जर्नलिस्ट बनती है।
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