Story behind the story
आज सोमवार की सुबह, हफ्ते का पहला दिन, काम का जोश तो होता है लेकिन एक अजीब सी घबराहट होती है, ये सोचकर सप्ताह शुरू हो गया और इस हफ्ते कुछ अच्छा और नया करना है। एक अच्छी बेहतरीन स्टोरी होनी चाहिए। मैं सुबह सुबह एयर प्यूरिफायर का रियालिटी चेक करने निकल गई। मैं अपनी स्टोरी से पहले पूरी तैयारी जरूर करती हूं, किससे मिलना है कहां जाना है कब तक स्टोरी होगी, क्या क्या करना होगा। लेकिन आज एक कंपनी का पता ऐसा था मैंने ज्यादा रिसर्च नहीं की और निकल पड़ी। सोचा कुछ तो मिलेगा कहीं तो जाकर टकरा जाऊंगी। दोपहर 1 बजे से शाम के पांच बज गए बस ढूंढती ही रही, लेकिन शुक्र है आखिर में पता मिला और सही कंपनी थी। काम की कंपनी थी, मेरी स्टोरी के लिए परफेक्ट मैच। वाह, थैंक यू ड्राइवर भैया और कैमरामैन दादा। आपका धैर्य और साथ।
खैर शाम 7 बजे फ्री हुए स्टोररी खत्म करके। ये तो हुई स्टोरी और खबरों का सफर।हम तो असली मुद्दे पर आते हैं। आज कैलाश कॉलोनी जाते वक्त सड़क पार करती एक मां बेटे को गोद में लिए दिखी। वो बच्चे को स्कूल से घर ले जा रही थी। अपने साड़ी का पल्लू बच्चे के सिर पर रखे हुए,उसे चिलचिलाती धूप से बचाने के लिए। दोपहर के 2 बज रहे थे। धूप सिर पर थे और बच्चा छोटा सा मां के साये में लिपटा हुआ। आह क्या नजारा था, प्यार ममता का नजारा। लेकिन एक सवाल जो तुरंत आया, ये वही बच्चा है जो बड़े होकर मां को अपने साये से वंचित करता है। भूल जाता है मां के बलिदान को जो धूप से उसे बचाती है, ममता के आंचल में ठंडी छाव में रखती है। बड़े होकर ऐसे कई बच्चे मां बाप को बोझ समझकर छोड़ देते हैं।ज्यादा कुछ नहीं कहना मुझे।
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