Story behind the story

आज का दिन रिपोर्टिंग के लिहाज से अच्छा था क्योंकि जिस स्टोरी के लिए मेहनत की थी वो सक्सेसफुल रही। एक स्टोरी के दौरान आप कई जगह जाते हैं और कई लोगों से मुलाकात होती है बात होती है। कई बार हम स्टोरी को सक्सेस नहीं दे पाते लेकिन कुछ ऐसे अनुभव होते हैं जो एक्सीलेंट होते हैं। कल कुछ ऐसा हुआ। शाम को जब मैं अपनी स्टोरी कंप्लीट करके लौटी तो सबने स्टोरी की तारीफ की। मुझे पता चला मेरी प्लास्टिक रोड की स्टोरी कई प्लैटफॉर्म पर जाएगी। अच्छी स्टोरी रही और सराही गई। लेकिन ये बहुत अहम नहीं होता। ये टेंपररी तारीफ होती है जो वक्त के साथ गायब हो जाती है। 

अच्छा तब लगा जब इस स्टोरी के अंत में मैं किसी ऐसे व्यक्ति से मिली जिनकी स्टोरी मैंने कवर की। उन्होंने जाते वक्त मुझे एक टोकन दिया और कहा कि आप बहुत अच्छा काम कर रही हैं। उन्होंने मुझे सम्मान दिया। इतना अच्छा लगा। मैंने कहा- ऐसा कुछ नहीं है ये काम है मेरा। लेकिन जिस जज्बात के साथ उन्होंने प्लास्टिक से बने टाइल्स मुझे दिए तो अच्छा लगा। बस यही था। काम तो रोज करते हैं, कभी अच्छी स्टोरी कभी नहीं। लेकिन जब कोई आपके काम को समझें और सम्मान दे तो वो फीलिंग प्रेरणा देती है। काम तो सब करते हैं लेकिन काम को सम्मान कुछ ही लोग देते हैं। 

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