Story behind the story

आज कृषि उत्पादनों का निर्यात पांच सालों में कम हुआ है, इस खबर के पीछे लगी हुई थी। इस दौरान बहुत नजारें सामने आए। एक इस खबर की पुष्टि और आंकड़ों के लिए उद्योग भवन से कृषि भवन और फिर न जाने कहां कहां। खबर तो शाम 4 बजे तक बन गई और आंकड़ों के साथ भेज दी। लेकिन इस दौैरान मैं जहां जहां गई उन रास्तों पर कुछ उलझे से दृश्य दिखे जो जिंदगी के कई फलसफे दे गए।

एक इंसान जो सीपी के सर्कल पर बैठता है रोजाना, उसके दोनों हाथ नहीं है। एक दूसरा इंसान शायद वो रोज उसे खाना खिलाता है, लेकिन मैंने आज देखा। वो अपने हाथों में उस भिखारी को खाना खिला रहा था, जैसे ही मैं रुकी वो भी रुक गया।  इस नजारें ने आंख भर दी। यही नहीं दोनों की आंखों में और चेहरे पर कोई शिकायत या गिला नहीं था जिंदगी को लेकर। 

आप सोच सकते हैं, एक जिंदगी मिली है वो भी ऐसी, लेकिन चेहरे पर कोई शिकस्त नहीं। जिसके हाथ नहीं और जो उसे खाना खिला रहा था, दोनों जिंदादिल जिंदगी की मिसाल है। 

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