Story behind the story
हमें रोजाना आदत है कि हम हर चीज, रिश्ते, काम और अपने जीवन को लेकर क्रिब करते रहते हैं। मतलब शिकायत लगाते रहते हैं। ये गलत है वो गलत है। अच्छा नहीं है कुछ, सिस्टम खराब है, जिंदगी बेकार है। प्रोफेशन और अपने जॉब को हम रोज गालियां देते हैं।
ऐसा कुछ कल महसूस हुआ मुझे। कल सुबह शूट पर जाने से शुरू हुआ शाम तक रात तक हर कोई बस शिकायत कर रहा था। उसमें मैं नहीं थी। मतलब ये सुबह कैमरा मैन ने सिस्टम को दोष दिया कैब देर से आई। उसके बाद सिक्योरिटी को दोष ऐसे कोई काम होता है क्या। सब को बस सरकारी आराम चाहिए। ड्राइवर ने फेसिलिटी का दोष दिया, वो लोग ही काम नहीं करते हैं, मुझे लेट से बताते हैं। कोई ढंग से काम नहीं करता। उसके बाद पूरे दिन ये सिलसिला चलता रहा।
एसाइनमेंट ने आउटपुट का दोष दिया वो लोग पता नहीं क्या करते हैं, प्रोड्यूसर ने मुझे दोष दिया तुमने पता नहीं क्या स्टोरी बताई है और क्या स्टोरी लिखी है। दोनों में फर्क है। जबकि ऐसा कुछ नहीं है। यहां कम्यूनिकेशन पता नहीं क्या होता है। मीटिंग में किसी ने बोला ये हमारा दोष नहीं है ये तो रिपोर्टर ही ऐसा करते हैं। मतलब चलता रहा लगातार। खैर शाम तक थक गई और लगा जैसे बस क्रिब और शिकायतें, एक दूसरे पर दोष और सिस्टम को गलत ठहराना।
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