story behind the story

रोजाना खबरें और स्टोरीज करना हमारे काम का हिस्सा है। सुबह उठते ही हम ढूंढने लगते हैं अपने कॉन्टैक्ट टटोलते हैं। स्टोरी अगर करनी है तो दस लोगों का जुगाड़ चाहिए। कंज्यूमर स्टोरी है तो कंपनी, लोगों का वर्जन, सरकारी टेक चाहिए। 


कुछ चीजें आसानी से हो जाती हैं, लेकिन कुछ चीजों के लिए ऊपर नीचे एक कर दो फिर भी शाम तक कोई वर्जन नहीं मिलता। कई बार सरकारी या कंपनी के वर्जन के बगैर सब अधूरा होता है। दिक्कत ये है कि आपको स्टोरी करनी है उसमें दम भी लाना है। एक नहीं बोलता तो दूसरे को देखो। मतलब मैंने अनुभव किया है कि चार महीनों में कि किसी के वजह से स्टोरी न रुके। कुछ न कुछ तो करना होता है। 

कहीं न कहीं से कोई रिलेटेड वर्जन लाओ लेकिन लाओ। आप इंतजार करते रहोगे तो हो गया। कई बार इग्जैक्ट नहीं मिलता लेकिन आस-पास रिलेटेड मिल जाए और स्टोरी खड़ी हो जाए। ऐसा होता है और मैंने किया है। एक जगह से नहीं दूसरी जगह और कुछ ना कुछ मिल जाता है। इसलिए खुदपर यकीन रखो और आगे बढ़ो। काम हो जाएगा

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