आम से खास बनने की कोशिश रोज
जिदगी हर रोज एक नया सवाल और नया फलसफा लेकर आती है। सुबह होती है एक नए सवाल
के साथ और रात तक किसी और सवाल का जवाब या सीख मिल जाती है। हर रोज कुछ नया करने
की कवायद हमें जिदंगी के और करीब ले जाती है। रोज सुबह होती है एक नई उम्मीद के
साथ लेकिन शाम होते होते वह उम्मीद एक निराशा मे बदल जाती है। रोज यही कहानी
दोहराती हूं। उसी गलियारे में कदम रखती हूं, उन्हीं सीढियों से चढ़ती हूं, उन्हीं
लोगों की बातें सुनती हूं, वहीं मानसिक पीड़ा सहती हूं। इसी उम्मीद के साथ की कभी
तो वो दिन निकलेगा।
कभी तो रात ढलेगी सवेरा होगा, चांद की चांदनी के साथ सूरज की
रोशनी भी होगी। ऐसा करते करते न जाने कितने साल निकल गए, लेकिन अब तक जिंदगी के उस
आनंद से खुद को वंचित रखा है। लोग जिंदगी के हर पल को आखिरी पल की तरह जीते हैं,
लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकती हूं, मुझे उस एक पल के लिए सारे पल गंवाने पड़ते हैं।
वह एक पल जब मैं दिल से खुश होंगी, जब वह पल सिर्फ मेरा होगा। लेकिन इंतजार इतना
लंबा होता है कि सब्र इम्तहान लेने लगता है। कभी कभी उम्मीदों का चिराग बुझ जाता
है, और मैं थक हारकर रो पडती हूं। बस कुछ पल के लिए। फिर उसी ज्वाला के साथ जल
उठती हूं। वहीं रोशनी जगमगा उठती है। रात खत्म और नया एक दिन शुरू। जिस दिन ये जलन
मिट जाएगी उस दिन सब खत्म हो जाएगा। अपने भीतर जल रही उस आग को ठंडा नहीं होने
दूंगी। रोजना मैं इस तपिश में जलना चाहती हूं। ये आग मुझे जलाती रहेगी और मैं आगे
बढ़ने की होड़ में...दौड़ती रहूंगी। थमना मना है।
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