परिवार बांधता है तो तोड़ता भी परिवार है..
रोजमर्रा की जिंदगी में बढ़ते उतार-चढ़ाव, व्यस्तता, घरेलू झगड़े, अवैध गर्भवस्था, मानसिक तनाव लोगों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रहे हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में इन सब कारणों के चलते प्रत्येक घंटें 16 लोग आत्महत्या करते हैं।
वर्ष 2011 से अब तक कुल 1.35 लाख लोग आत्म हत्या के शिकार बन चुके हैं। आत्महत्या करने वालों में ज्यादातर विवाहित शामिल हैं। इसमें आपसी घरेलू झगड़े व पारिवारिक समस्याएं समेत आय-व्यय में भारी असमानता शामिल हैं। यह सभी कारण मानसिक असंतोष को जन्म देते हैं। जिसकी वजह से वह इस तरह के कदम उठाने पर मजबूर हो जाता हैं।
मौजूदा दौर में आय के स्रोत बढ़ाने के लिए पति-पत्नी का काम पर जाना बेहद आम हो गया है। यह ना सिर्फ उनकी पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी हैं, बल्कि उनकी आर्थिक हालत में सुधार को बेहद मायने रखता हैं, लेकिन यह सब पारिवारिक कलह का भी कारण बन रहा हैं।
राजस्थान में पारिवारिक कलह व मानसिक असंतोष के चलते आत्महत्या के सबसे अधिक मामले सामने आएं हैं। आंकड़ों के मुताबिक सामाजिक-आर्थिक कारणों की वजह से ही ज्यादातर युवा आत्महत्या करते हैं, लेकिन महिलाएं कहीं ना कहीं भावुक होकर भी ऐसे फैसले ले लेती हैं। आत्महत्या करने वालों में 38 फीसद निजी क्षेत्र में काम करने वाले लोग है। सरकारी नौकरी करने वाले लोगों की संख्या काफी कम हैं।
तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र सबसे आगे हैं। इन राज्यों में वर्ष 2011 के दौरान आत्महत्या के कुल मामलों के 56 फीसद सामने आए हैं। वहीं देश के बड़े शहर जिनमे दस लाख की आबादी वाले शहर जैसे चैन्नई, बैंगलुर, दिल्ली, मुंबई और चंडीगढ़ में कुल मामलों के 36 फीसद आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। चेन्नई में वर्ष 2011 में कुल 2,438 मामले, बैंगलुरू में 1,717, दिल्ली में 1,385 एंव मुंबई में 1,162 केस दर्ज हुए हैं।
पारिवारिक कलह व मानसिक असंतोष के अलावा अवैध गर्भावस्था भी आत्महत्या के मुख्य कारणों में शामिल हैं। यही नहीं वर्ष 2011 में अवैध गर्भावस्था से आत्महत्या करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ हैं।
कम उम्र में बढ़ रहे यौन संबंधों के मामले भी आत्महत्या करने का एक कारण है। इसके चलते कम उम्र में अनचाही प्रेगनेंसी हो जाना आत्महत्या का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है।
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