Story behind the story

मीडिया में खबरों का अकाल नहीं होता जो मिल जाए रोज वही खबर है। लेकिन खबर और स्टोरी में फर्क होता है। कई बार कुछ समझ नहीं आता। दिनभर स्टोरी ढूंढने और उसे ढांचे में ढालने में चला जाता है। दिमाग इतना थक जाता है सोचते सोचते की लगता है बस यही काम है बस जीवन में। लेकिन नौकरी का सवाल है और सबसे बडी बात खुद को स्टोरी के बगैर अच्छा नहीं लगता है। 

मेरे कुछ दिन ऐसे ही गए, कई बार ऐसा होता है, कोई दिन ऐसा भी होता है जब चीजें भले ही आपके सामने हैं लेकिन आप स्टोरी नहीं निकाल पा रहे हो। इसका मतलब आप फेल नहीं हो। ये समझना बहुत जरूरी है। रोज एक नहीं होता ठीक वैसे ही हर दिन आप एक जैसी सोच के साथ या एक ही तरह चीजें नहीं कर सकते। 

कई बार खूब सारी चीजें होती हैं कई बार एकदम खाली। लेकिन मुझे उस दिन बहुत बेकार लगता है हर पत्रकार को ही लगता होगा जिस दिन बडा कुछ न किया हो। रात दिन बस एक ही चीज दिमाग में यार कुछ बड़ा निकल नहीं रहा। ऐसे में आप डिमोटिवेटेड भी होते होंगे, लेकिन ऐसे नहीं चलेगा। आपको हमेशा पॉजिटिव रहना होगा और ये नहीं सोचना की कुछ हो नहीं रहा तो मैं फेल हूं। ये पार्ट है काम का , अच्छा बुरा चलता रहेगा। 



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