Story behind the story
हैलो दोस्तों, काफी दिनों बाद दस्तक दे रही हूं, इतनी उम्मीद के साथ की आपने कुछ कमी तो महसूस की ही होगी, मैंने कुछ लिखा नहीं पिछले 10 दिन में। दोस्तों चाहती तो लिख सकती थी, मैं अपने घर गांव गई थी, काम से दूर। कुछ वक्त परिवार और रिश्तेदारों के साथ बिताने। काम वहां भी था, लेकिन खबरें या स्टोरीज नहीं। दूसरे तरह के काम। आप लोगों को मिस किया, अपनी स्टोरीज खबरें। रोज अलर्ट आते थे, आज ये हुआ आज वो बड़ा हुआ। अपडेट रहती थी लेकिन कुछ दिन डायरेक्ट खबरों से जुड़े रहने का मन नहीं होता था।
चलो फिर भी इस दौरान वहां एक पत्रकार को जो अनुभव हुए वो आपके साथ सांझा करती हूं। पत्रकार जब अपने घर जाता है तो वो वहां भी सब कुछ परफेक्ट करने की कोशिश करता है। कई बार वो भूल जाता है कि वो एक आम इंसान है नॉर्मल। जो बिखरा सा है अधूरा सा, गड़बड़ सा। बहुत प्रैक्टिकल हो जाता है पत्रकार। मैं भी कुछ ऐसी ही हो गई। मुझे नहीं पता औरों के साथ ऐसा हुआ या नहीं। एहसास कहीं रहते ही नहीं , हर चीज एकदम खड़ी नजर से देखने लगते हैं। घर पर भी कुछ ऐसा हुआ। हर चीज, हर बात पर बस एकदम साफ और खड़ा एक्शन। अच्छा भी है और कई बार बुरा भी।
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