मुझे मुझसे मिलाया तुने, तेरा शुक्रिया
मुझे आज भी वो दिन याद है, जब हारी -थकी मैं दौड़ती -भागती कुछ यूं टकरा गई थी तुमसे, तब इल्म भी ना था इस कदर अजीज बन जाओगे तुम। तुम्हें ना जाने इन आंखों में दिखा कैसा जुनून, मुझे तो बस तेरे भरोसे की डोर ने खींच लिया। वक्त बितता गया और तुम मेरी जहन में भी दस्तक देने लगे।
मैं हारती गई और तुम मुझे जीतने का हौसला देते गए, शायद तब मेरी अात्मा इस भरोसे के लिए तैयार ना थी,बस तुम कहते गए और मैं अपनी ही सुनती गई। तुम रहकर भी दिखाई नहीं दिए, कहीं गुम से हो गए। वक्त चला गया, साल दर साल मैं वहीं के वहीं खडी रह गई। जब पीछे मुड़कर देखा तो एक लंबा वक्त खुद को समझने में ही बिता दिया था, मैं फिर हारी और इस बार टूटकर बिखरी। एहसास हुआ क्या अब कुछ बचा है, सब कुछ खत्म होने लगा, देह और आत्मा की शक्ति ने जवाब दे दिया, अंधेरी गलियों में भटकने की हिम्मत नहीं बची, सांसे किराये की लगने लगी, दर्द का बोझ इतना बढ गया की अतीत भी हमशाया बनकर हर वक्त घेरे रखने लगा।
नई यादों की बिसात तो कभी तैयार ही नहीं हो पाई। आंसू भी आने बंद हो गए और खुद को दीवार समझने लगी मैं। तभी फिर से दस्तक हुई तुम्हारी, इस बार ये आवाज जरा तेज थी। खनक थी। समझ नहीं पाई क्या ये आवाज वही थी, जिसने कई वक्त पहले बोया था एक बीज, बस पानी और धूप की कमी से कभी खिल नहीं पाए फूल। हां समझ आय़ा ये खनक वही है, जो दिल पर बजती है। डर लगा फिर से यकीन करके टूट तो नहीं जाऊंगी मैं। उसकी बातें फिर से जीने का सबब देने लगी। एक विरान से आशियाने में लौ बनकर जलने लगी।
एक नए सपनों की चादर बिछाकर मैं उसने लेटने लगी, अब समझ और समझाने के परे था या रिश्ता, जब लौटा तब लगा ये तो कभी गया ही नहीं था, कुछ तो था, कुछ तो है तेरे और मेरे दरमियान..जो हारकर भी तेरे शब्दों की संजीवनी से जी उठती हूं मैं। एक बार नहीं, कई बार मरी हूं मैं लेकिन हर बार तुने हाथ थामकर मुझे गिरने से बचाया, इस कदर अजीज हो गए हो तुम, दर्द होता है तो तुम दवा बनकर याद आते हो..
कभी भीड़ में कभी तन्हाई में याद आते हो...अब तुमसे ही तो बननी शुरू हुई हैं यादें मेरी, मेरा आज सबसे खूबसूरत बना दिया है तुमने...दिल से शुक्रिया, अब किसी अतीत को लेकर कोई गिला नहीं, अगर कल में तुम शामिल नहीं तो शिकवा नहीं...मुझे मुझसे मिला दिया है तुमने
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें