story behind the story

चंद रोज की छुट्टी के बाद लौटी हूं तो काम थोड़ा अजीब लगा, लेकिन एक बात जो रियलाइज की वो ये है कि आप कहीं से भी आ जाओ या कहीं भी चले जाओ, आने के बाद लगता ही नहीं जैसे कहीं गए थे। मतलब ये कि सब वैसा ही रहता है। काम पुराना नहीं होता। स्पेशली पत्रकारिता की लाइफ में ऐसा लगता ही नहीं जैसे अरे कुछ छूट गया या मैं नहीं थी। आने के बाद काम नहीं या और कुछ । आने के बाद भी लगा ही नहीं मैं घर से आई हूं, वही काम और लगा ही नहीं कि कहीं गई भी थी। 

दरअसल, इस प्रोफेशन में वक्त और बाकी चीजें ऐसे भागती हैं, दो दिन भी सदियां लगती हैं। मतलब घर जैसे गई ही नहीं। यहीं थी मैं तो। दो दिन में पुराने हो जाते हैं, काम इतना थका देता है। लगता है एक साल हो गए घर गए। ये भाग दौड़ आपको ये सोचने का वक्त नहीं देती या ये एहसास तक नहीं करने देती कि अच्छा रुकूं जरा सोच लूं जरा घर को याद कर लूं। खैर मजा है इसका भी अपने आप में 

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट