फिर से चुनौतियों के भंवर में फंसी महबूबा मुफ्ती...
महबूबा मुफ्ती के सामने एक बार फिर बड़ी चुनौती आन पड़ी है। पिता की मौत के बाद जो राजनीतिक सफर उन्होंने तय किया था वो बीजेपी के अलग होने के बाद डगमगाया सा नजर आ रहा है। यही नहीं कश्मीर के जो हाल हैं वो बेबस नजर आ रही हैं।
मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू कश्मीर के दिग्गज नेताओं में से एक थे। पीडीपी को एक मजबूत राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित करने में मुफ्ती का बड़ा योगदान रहा है। आज वे दुनिया को अलविदा कह गए। देश ने एक अनुभवी राजनेता खो दिया। उनके निधन के साथ ही जम्मू कश्मीर की सत्ता कौन संभालेगा इसे लेकर सवाल तेज हो गए।
मुफ्ती मोहम्मद सईद जम्मू कश्मीर के दिग्गज नेताओं में से एक थे। पीडीपी को एक मजबूत राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित करने में मुफ्ती का बड़ा योगदान रहा है। आज वे दुनिया को अलविदा कह गए। देश ने एक अनुभवी राजनेता खो दिया। उनके निधन के साथ ही जम्मू कश्मीर की सत्ता कौन संभालेगा इसे लेकर सवाल तेज हो गए।
हालांकि जब से उनकी सेहत खराब हुई थी इस बात पर कयास लगने शुरू हो चुके थे कि सईद की बेटी महबूबा मुफ्ती ही उनका कार्यभार संभालेंगी। आज उनके निधन के बाद ये बात तय हो गई कि महबूबा ही जम्मू की देखरेख करेंगी। लेकिन अभी किसी भी बात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। आज मुफ्ती मोहम्मद का अंतिम संस्कार होना है।
इन सबके बीच बड़ा सवाल ये है कि महबूबा अपने पिता से बिल्कुल अलग हैं और राजनीतिक अनुभव के मामले में भी उनके काम करने का तरीका बिल्कुल जुदा है। जम्मू की राजनीतिक सियासत कितनी बदलेगी ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। कश्मीर में पीडीपी और बीजेपी का गठबंधन है। ऐसे में महबूबा को कई राजनीतिक चुनौतियां का सामना करना पड़ेगा।
महबूबा की राजनीतिक चुनौतियां
साल 1999 की बात है, जब मुफ्ती ने बेटी महबूबा के साथ मिलकर अपनी खुद की पार्टी तैयार की और कांग्रेस से अलग हो गए। तीन साल के अंदर पीडीपी राजनीतिक पार्टी के तौर पर खड़ी हो गई। हालांकि कई लोगों ने कहा कि पीडीपी कश्मीर में मुसलमानों को तोड़ने और उनके वोट के लिए बनी है, लेकिन ऐसा नहीं था। पीडीपी को श्रीनगर-मुजफ्फरबाद रोड तैयार करने का श्रेय जाता है। पाकिस्तान के साथ व्यापार के मामले में भी कश्मीर की इस पार्टी ने बडा़ योगदान दिया है।
कहा जाता है कि तीन साल मुफ्ती मोहम्मद ने बेहतरीन मुख्यमंत्री की भूमिका निभाई है। पीडीपी नेताओं में उनके बाद उनकी बेटी महबूबा का नाम आता है। उन्हें ही पार्टी का गर्व और आत्मा कहा जाता है। लेकिन अब पूरा दावेदार उनके कंधे पर है। उन्हें बीजेपी के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर गठबंधन को बनाए रखना है, साथ ही कश्मीर में पीडीपी का अस्तित्व भी देखना है। ऐसे में उनके लिए राजनीति में कई चुनौतियां इंतजार कर रही है। वे बीजेपी के साथ कुछ ज्यादा अच्छे रिश्ते लेकर नहीं चलती हैं। इससे पहले उन्होंन कई बार बीजेपी के खिलाफ बयानबाजी भी की है।
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