Story behind the story
हमारे प्रोफेशन में ऐसा लगता है जैसे सुकून नहीं है , काम में सैटिसफेकशन नहीं है। मतलब ये की रोज कुंआ खोदो रोज पानी पियो। हाल यही है। एक दिन भी आप आराम से हल्का काम नहीं कर सकते। मतलब रोज आपको कुछ अच्छा बड़ा देना है। जैसे आपने आज एक एक्सक्लुसिव की मतलब ये नहीं आप कल के लिए फ्री हैं।
एडिटर और असाइनमेंट पूछेगा क्या भई आज का हो गया कल क्या है। या पूछेगा अरे आपने आज कुछ नहीं दिया बड़ा । आपको आने वाले 6 दिनों के लिए तैयार रहना होता है। आपने सोचा आज बड़ी स्पेशल कोई आधे घंटे की शो की स्टोरी कर दी तो चलो कल कुछ निकाला जाएगा, नहीं। अगर आपने पूरे दिन कुछ नहीं दिया तो शाम को अजीब सा जवाब आता है डेस्क से। क्या भाई ऐसे कैसे चलेगा, बाजार खाली है क्या। खबरें नहीं है। कुछ बड़ा करो।दो कुछ स्पेशल । चुप मत बैठो।
ले भैया। चैन तो हमें भी नहीं मिलता। मतलब खुद को भी लगता है जैसे हां मैंने आज काम नहीं किया। ये कैसे हो गया। अच्छा नहीं लग रहा। कुछ बड़ा तो करना होगा। हाय रे जर्नलिज्म, पत्रकारिता।
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