बात समझने की है

बात भावना की है बस, समझो या न समझो तुम

मेरे अपने हो आज भी, समझो या न समझो तुम

यूं ही कोई बेवज़ह इतने नज़दीक नहीं आता जीवन में,

वो नजदीकी आज भी बरक़रार है, समझो या न समझो तुम

इंसान हूँ न ! कुछ कमियां  मुझ में हैं और हैं तुम में भी

बहुत सी अच्छाइयां भी हैं दोनों में, समझो या न समझो तुम

फूलों से महकती बगिया की सुन्दरता देखो कभी वक़्त निकाल

ऐसे ही दोनों के हृदय भी हैं सुन्दर, समझो या न समझो तुम

राह चलना, रुकना, सुस्ताना, हौले से आगे बढ़ना, मुस्कुराना,सब मालिक के चाहे से ही होता है, समझो या न समझो तुम.....

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