वक्त की शाख पर...
रोज हम एक नया सपना देखते हैं,
रोज हमारा वो सपना टूट जाता है, रोजाना एक नई उम्मीद का दामन धामते हैं, रोजाना वह
बिखर जाती है, फिर एक नई आस बंध जाती है,,,
कहीं न कहीं से जीने की वो ताकत मिल जाती है। एक बार को हमें लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया है, एक गम के बाद, एक टूटी डोर के बाद, एक टूटे सपने के बाद, लेकिन ऐसा होता नहीं है,
हममें फिर से वो ऊर्जा पैदा हो जाती है, वो ताकत आ जाती है लड़ने की। फिर से जिंदगी जीने की। फिर एक नया सपना दस्तक देने लगता है।
एक नई सुबह रोशनी की चादर उढ़ाने के लिए तैयार हो जाती है और हम वक्त की शाख पर खुदको रखकर फिर आगे निकल पड़ते हैं.....
कहीं न कहीं से जीने की वो ताकत मिल जाती है। एक बार को हमें लगता है कि सब कुछ खत्म हो गया है, एक गम के बाद, एक टूटी डोर के बाद, एक टूटे सपने के बाद, लेकिन ऐसा होता नहीं है,
हममें फिर से वो ऊर्जा पैदा हो जाती है, वो ताकत आ जाती है लड़ने की। फिर से जिंदगी जीने की। फिर एक नया सपना दस्तक देने लगता है।
एक नई सुबह रोशनी की चादर उढ़ाने के लिए तैयार हो जाती है और हम वक्त की शाख पर खुदको रखकर फिर आगे निकल पड़ते हैं.....
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