अश्क

वैसे तो सागर से रोजाना टकराती हैं अनगिनत लहरें, कितनों को मिला है साहिल...
वैसे तो जिंदगी सिखाती है हजारों फलसफे जीने के, कितनों को मिली है मंजिल...

वैसे तो दिल में उमड़ते हैं लाखों सैलाब, कितनों के साथ लोग करते हैं इंसाफ...

इसलिए गम नहीं है ऐ एहदे वफा कि भीड़ में नहीं पहचान पाई तुम अपने ही अश्क को.... 

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