लम्हे...
वक़्त की शाख से लम्हे नहीं टूटा करते
हाथ छूटे भी तो
रिश्ते छूटा नहीं करते
छूट गए यार न
छूटी यारी मौला
जिसने पैरों के
निशान भी नहीं छोड़े पीछे
उस मुसाफ़िर का
पता भी नहीं पूछा करते
हाथ छूटे भी तो
रिश्ते नहीं छूटा करते
छूट गए यार न
छूटी यार मौला
तूने आवाज़ नहीं
दी कभी मुड़कर वरना
हम कई सदियां तुझे घूम के देखा करते
हम कई सदियां तुझे घूम के देखा करते
हाथ छूटे भी तो
रिश्ते छूटा नहीं करते
छूट गए यार न
छूटी यारी मौला
बह रही है तेरी
जानिब ही ज़मीं पैरों की
थक गए दौड़ते
दरियाओं का पीछा करते
हाथ छूटे भी तो
रिश्ते नहीं छूटा करते
वक़्त की शाख से लम्हे नहीं टूटा करते
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