बड़ी बहस : पहले सजा, रिहाई और फिर नया कानून, क्या बदलेगी स्थिति?
पहले निर्भया गैंगरेप के खिलाफ जनभावना उठी, फिर उसके आरोपियों को सजा देने के समर्थन में और इन दिनों बहस नाबालिग की रिहाई पर छिड़ी हुई थी।
चारों ओर संसद से लेकर सड़क तक बस जुवेनाइल कानून में बदलाव और आरोपी को सजा देने के पक्ष पर बहस हो रही थी, लेकिन किसी ने भी ये सोचने की कोशिश नहीं कि आखिर कोई भी कानून आरोपी की मानसिक स्थिति को बदल पाएगा, क्या उसे अपराध करने से रोक पाएगा। क्या उम्र की सीमा कम कर देने से अपराध कम हो जाएंगे। राज्यसभा में बीते दिनों से जेजे बिल पास होते ही एक नई बहस शुरू हो गई। ये नया कानून अपने साथ कई नए सवाल लेकर आया है।
कानून के विशेषज्ञ ही मानते हैं कि सारी बहस और कोहराम बस सजा पर छिड़ा मचा हुआ है, कोई भी आरोपियों को सुधारने या अपराध के जड़ तक जाने के बारे में बात ही नहीं कर रहा है। जुवेनाइल पर कानून तो पहले भी था, क्या हम उसके जरिए नाबालिग अपराध कम कर पाए हैं। तो क्यों सारी बहस बस नाबालिग को सजा देने में केंद्रित हो गई। कहा जाने लगा कि जब तक नया कानून नहीं आएगा तब तक निर्भया को इंसाफ नहीं मिलेगा। तो अब निर्भया को इंसाफ मिल गया होगा।
पहला बड़ा सवाल : क्या उम्र की सीमा 18 से 16 कर देने से बलात्कार कम हो जाएंगे। पहले जुवेनाइल लॉ में जघन्य अपराध करने वाले नाबालिग की उम्र 18 के आधार पर ही सजा तय थी, लेकिन नए कानून में इसको बदला गया है। अब उम्र सीमा 16 कर दी गई है। मेरा सवाल ये है कि क्या उम्र सीमा में बांधकर बलात्कारी के अपराध का मापदंड तय होता है। अगर उसने 12 साल की उम्र में ये काम कर लिया तो।
अंदर कानून को लेकर कई तरह की बहस छिड़ी। किसी ने कहा, आजकल बच्चे जल्दी बडे हो जाते हैं और मानसिक तौर पर मेच्यूर नहीं हो पाते हैं, किसी ने कहा कि जुवेनाइल आजकल ज्यादा अपराध कर रहे हैं, ऐसे में उनके सजा के प्रावधान अलग होने चाहिए। किसी ने तर्क दिया कि जस्टिस वर्मा कमिटी सफल नहीं थी, नए कानून से महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराध कम होंगे। लेकिन असल निचोड़ कुछ और ही है। किसी ने भी सुधार गृह या माफी पर जोर नहीं दिया। क्या माफ करके अपराधी को प्रायश्चित करने का मौका देना इंसाफ नहीं है। इंसाफ सिर्फ सजा से ही तय होता है। चलो फिर तो कल निर्भया को इंसाफ मिल गया होगा।
दूसरा सवाल : रिहाई, सजा और फिर नया कानून इन सबके बीच बहस अपराध कम करने के लिए अपराधियों की मानसिक स्थिति या उन्हें सुधारने पर नहीं हुई। राज्य सभा ने जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन एक्ट 2000 की जगह कल नया कानून बना दिया है। नए कानून के अनुसार 16 से 18 के बीच के किशोरों के ऊपर जघन्य मामलों में बालिगों जैसा मुकदमा चलेगा। जुवेनाइल के अपराध को जघन्य अपराध, गंभीर अपराध, मामूली अपराध में बांटा गया है। अपराध के अनुसार बाल अपराधी को तीन साल से लेकर सात साल तक सजा मिल सकेगी। देश के हर जिले में जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड बनाया जाएगा।
क्या जुवेनाइल की उम्र 18 से कम कर 16 कर दी गई या 16 से 18 की नई कैटगरी बना दी गई है। समाज एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि 16 से 18 करने के बाद भी अपराध जघन्य है या नहीं, बाल मन की नासमझी में किया गया है या जानबूझ कर इसका फैसला उम्र से नहीं होगा। जुवेनाइल बोर्ड तय करेगा कि बाल अपराधी को पुनर्वास के लिए भेजा जाए या उस पर बालिगों के समान मुकदमा चले। मेरा भी सवाल यही है कि क्या उम्र तय करेगा कि अपराध कितना बड़ा था। या कानून के आधार पर भले ही वो कितना जघन्य क्यों ना हो..उसकी सजा तय होगी।
तीसरा सवाल : क्या केवल निर्भया गैंगेरेप के बाद आए जन आंदोलन के बहाव में बहकर सरकारी तंत्र ने ये फैसला लिया, या वाकई कानून पर काम हुआ। क्या ये सरकार की गलती है या सोच समझकर प्रावधानों के साथ बिल बना। मुझे नहीं समझ रहा है कि पहले का जुवेनाइल कानून फेल हो गया है, नया कानून कितना कार्यकर होगा। साल 2014 में ही लोकसभा में ये विधेयक पेस हुआ था और साल 2015 मई में लोकसभा ने उसे मंजूरी दे दी थी, लेकिन मंगलवार को तमाम चर्चा के बाद राज्यसभा में बिल पास हो गया।
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