कानून में नहीं, संविधान में बड़े बदलाव की है जरूरत : प्रसून जोशी
जहां एक ओर देश में निर्भया के नाबालिग आरोपी की रिहाई पर कोहराम मचा हुआ है, संसद से लेकर सड़क तक नाबालिग कानून में बदलाव को लेकर बहस छिड़ी है। इस बार क्रांति सजा या इंसाफ को लेकर नहीं आई है बल्कि सरकार के कानूनों में बदलाव की आई है।
संविधान में बदलाव, वही सरकार जिसे हम खुद चुनकर ही संसद तक भेजते हैं। आज जब नाबालिग कानून में बदलाव की बात हो रही है तो सवाल सत्ता पर बैठे लोगों पर उठ रहे हैं, संविधान पर उठ रहे हैं।
इस बारे में हमने गीतकार और ऐड गुरू के नाम से मशहूर प्रसून जोशी से खास बात की। जोशी भी देश में हो रही हलचल से बेचैन और बेताब हैं। लेकिन वे कतई नाबालिग की सजा-ए-मौत से इत्तेफाक नहीं रखते हैं। प्रसून ने साफ कहा, मैं कतई इस बात को नहीं मानता कि दोषी को फांसी पर लटका देने से इस बीमारी से हमें निजात मिल जाएगा। हमें इसकी जड़ तक जाना होगा।
क्या आपको लगता है कि अब क्रांति का नहीं, कानून में बदलाव का वक्त है
हां मुझे लगता है अब बातों से या शब्दों से क्रांति लाने से पहले हमें देश के कानून में बदलाव करने की जरूरत है। नाबालिग कानून में बदलाव पर अब तक कोई बहस नहीं हुई। सही माइने पर इसपर कोई काम नहीं हुआ है। मुझ लगता है जनता जिस सरकार को चुनकर लाती है उसको सोचने की जरूरत है। राष्ट्रीय चेतना की जरूरत है। संविधान में एक बड़े बदलाव की जरूरत है।
हिंदी साहित्य के अस्तित्व की लड़ाई कब खत्म होगी
हां ये लड़ाई बहुत पुरानी है। लेकिन ये लड़ाई तब तक खत्म नहीं होगी जब तक लेखक ही पाठक बना रहेगा। जी हां लेखक लिखते हैं और खुद ही पढ़ते हैं, पाठकों को अपने टेस्ट पर ध्यान देना होगा। जब तक वे खुद चुनना नहीं सिखेंगे कि उन्हें क्या पढ़ना है, तब तक ये लड़ाई चलती रहेगी, लेकिन एक बात मैं जरूर कहूंगा कि हिंदी भाषा हमें मां से जोड़ती है और जो भाषा मां से जोड़ती है उसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ने की जरूरत नहीं होती।
क्या आपको लगता है हमारे संगीत का स्तर गिरता जा रहा है
हां मुझे लगता है ऐसा हो रहा है। लेकिन इसके जिम्मेदार भी हम दर्शक ही हैं। हमें जो चाहिए वही हमें परोसा जा रहा है। हमें चुनना होगा कि हम क्या सुनना चाहते हैं। हमें रिजेक्ट करना सिखना होगा। एक ओर बजेगा पार्टी ऑल नाइट और दूसरी हवन करेंगे। दोनों ही पार्टी सॉन्ग हैं, लेकिन हमें तय करना होगा कि हमें क्या चाहिए। सेंसर नहीं तय करेगा और ना ही हमें इसका हक सरकार को देना चाहिए कि हम क्या सुने और क्या नहीं। लेकिन इसका हक हमें है। हमें सामुहिक रूप से इंकार करना होगा।
प्रसून जोशी दिल्ली में कवि समारोह में हिस्सा लेने आए थे। कवि सम्मेलन के तीसरे और आखिरी दिन ऋचा अनिरुद्ध के जोशी की कविताओं के साज ने शमा बांध दिया। जोशी ने निर्भया से लेकर 26/11 तक की दर्दनाक तस्वीर को याद किया और अपने गीतों से दिलों पर एक बार फिर महरम लगाई।
संविधान में बदलाव, वही सरकार जिसे हम खुद चुनकर ही संसद तक भेजते हैं। आज जब नाबालिग कानून में बदलाव की बात हो रही है तो सवाल सत्ता पर बैठे लोगों पर उठ रहे हैं, संविधान पर उठ रहे हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें