13 साल के इस बच्चे ने सिखाया- ‘हालात जैसे भी हों, कभी न छोड़ना सपने देखना’
ये दाग-दाग उजाला, ये शबगुजीदा सहर
वो इंतजार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं।।
ये वो सहर तो नहीं, जिसकी आरजू लेकर
चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं मंजिल।।
क्या यही है आजादी, क्या यही है आजादी?
वो इंतजार था जिसका, ये वो सहर तो नहीं।।
ये वो सहर तो नहीं, जिसकी आरजू लेकर
चले थे यार कि मिल जाएगी कहीं न कहीं मंजिल।।
क्या यही है आजादी, क्या यही है आजादी?
नई दिल्ली (सुमन अग्रवाल)। अली सरदार जाफरी का ये शेर आज के भारत पर बिल्कुल सटीक बैठता है। क्या हमने 69 साल पहले इसी भारत की कल्पना की थी। दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश है जिसे मां कहा जाता है और इसी आजाद भारत के तिरंगे में अपने सपनों को लपेटे 14 साल का हरेंद्र अपने दिल में एक छोटा सा सपना संजोए आगे बढ़ता जा रहा है।
बच्चे भारत के भविष्य हैं। चाचा नेहरू ने बच्चों के इर्द गिर्द ही एक सुंदर भारत की कल्पना की थी। अब्दुल कलाम ने भी एक खूबसूरत भारत की कल्पना की थी। सवाल है कि क्या हम उसी भारत की ओर बढ़ रहे हैं? नोएडा में रहने वाले 14 साल के हरेंद्र को देख यह सवाल और भी गहरा हो जाता है।
हरेंद्र जो अपने सपनों को पूरा करने के लिए लोगों का वजन उठा रहा है। होशियारपुर सेक्टर 51 में रहने वाले हरेन्द्र के पिता विकलांग हैं। पहले किसी फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन अब वहां से निकाल दिया गया है। घर में मां और एक छोटा भाई है।
दो महीने पहले जब से पिता बेरोजगार हुए, तब से हरेंद्र नोएडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन के बाहर वेट मशीन लेकर बैठता है। स्कूल खत्म करके साइकिल चलाकर वो यहीं आ जाता है। शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक यहीं स्टेशन के बाहर एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ में वेट मशीन लेकर बैठा रहता है।
पढ़ाई के साथ-साथ वो अपने घर का खर्च भी निकलता है। वह कुछ घंटों में वो 70-80 रुपए कमा लेता है। इसी पैसे से उसके घर का राशन आता है और पढ़ाई का खर्च भी निकलता है। वह श्रीकृष्णा इंटर कॉलेज में क्लास 9 में पढ़ता है। वह पतला-दुबला और छोटा सा है लेकिन उसके सपने विशाल हैं।
वह पूरे आत्मविश्वास के साथ बताता है कि उसे क्या बनना है। उसकी सबसे अच्छी और खास बात यही थी कि उसे खुदपर यकीन है। सुषमा जो हरेंद्र से इसी मेट्रो स्टेशन पर मिलीं और इस बच्चे की सच्चाई और मेहनत की कायल हो गईं।
सुषमा हरेंद्र को रोजाना आते जाते इसी स्टेशन पर आधे घंटा पढ़ाती हैं। वे उससे कोई फीस नहीं लेती हैं। वे बताती हैं कि इससे उन्हें भी सुकून मिलता है। सुषमा कहती हैं कि 125 करोड़ की आबादी में 30 करोड़ से भी ज्यादा लोग गरीबी में जी रहे हैं।
सवाल ये है कि उन्हें क्या सपने देखने का हक नहीं है? क्या वे सुंदर भविष्य की कल्पना नहीं कर सकते? हरेंद्र को देखकर हम सबको ये जरूर सीखने को मिलता है कि हालात जैसे भी हों, हमें सपने देखना नहीं छोडऩा चाहिए।
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