...कभी फौजी बनना चाहता था 13 साल का हरेंद्र

सांप बनकर जो आए थे डसने उन्हें,  कुचला पैरों से तुमने मिटाया उन्हें
कर दिया एक पल में ही दुश्मनों का दमन, आज करता हूं मैं देश भक्तों को नमन
नई दिल्ली (सुमन अग्रवाल) : इस अधूरी सी कविता की तरह हरेंद्र का सपना भी कुछ अधूरा सा था। लेकिन अब लगता है हरेंद्र और उसके परिवार का सपना जल्द ही पूरा हो जाएगा। १३ साल के हरेंद्र के सपने को पूरा करने की जिम्मेदारी अब यूपी सरकार ने उठा ली है।
नोएडा सिटी सेंटर मेट्रो स्टेशन के बाहर वजन की मशीन लेकर रोजाना शाम से रात तक बैठने वाले हरेंद्र को अखिलेश सरकार ने लखनऊ बुलाया है। आज हरेंद्र लखनऊ अपने सपनों की नई उड़ान भरने के लिए लखनऊ जा रहा है। खबर आ रही है कि हरेंद्र ने सीएम अखिलेश से मुलाकात की और उसे पांच लाख रूपए दिए।
हरेंद्र वो बच्चा है जो सड़क की उस धीमी सी रोशनी में अपनी पढ़ाई की लौ जलाकर रखता है। हरेंद्र स्कूल से सीधा यहीं आ जाता है और मशीन के साथ-साथ अपनी पढाई की किताबें भी ले आता है। वो रात को ९ बजे तक यहीं पढ़ता रहता है और फिर कभी पैदल तो कभी ऑटो में घर चला जाता है।
तो ऐसे शुरू हुई कहानी
कहानी यहां से शुरू होती है। मैं हरेंद्र से उसी मेंट्रो स्टेशन पर डेढ़ महीने पहले मिली थी। उसके बाद से उससे एक रिश्ता सा जुड़ गया था। रोजाना ऑफिस से आते वक्त उससे एक बार मिलकर उसे उसके होमवर्क के बारे में कुछ समझा देना, ये तो जैसे रोज का एक काम हो गया था मेरा। जब कभी नहीं आता था वो मैं परेशान सी हो जाती थी, कुछ अधूरा लगता था। जिस वक्त ये खबर बनाई थी उस वक्त बहुत चाहा था कि शायद इसके सपनों को एक रंग देने के लिए मैं कुछ कर पाऊं, लेकिन मैं इतनी काबिल नहीं थी कि कुछ कर पाती इसके लिए। इसलिए बस इसकी कहानी १६ अगस्त के अखबार में ही सिमट कर रह गई।harendra-noida
लेकिन पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और बाकी अखबारों में छपी खबरों को देखकर लगा जैसे इसे अब पर मिल जाएंगे और देखो वही हुआ। जैसे ही मैंने बाकी जगह उसकी खबरों को पढा, मैं हरेंद्र से मिलने चली गई। पता चला पिछले कुछ दिनों से वो स्टेशन नहीं आ रहा था। घर गई तो हरेंद्र ने कहा, दीदी मैं बहुत व्यस्त हूं, मैंने कहा- तुम तो छा गए हरेंद्र। अब तुम्हारी उड़ान को कोई नहीं रोक सकता। उसने बताया कि सपा सरकार ने उसे भरोसा दिलाया है कि वो उसे मदद करेगी ।
केवल सरकार ही नहीं, हरेंद्र की लगन और सच्चाई देखकर कई लोगों ने उसे मदद करने की ठानी। खुशी इस बात की है कि भले ही सोशल मीडिया पर वायरल हुई उस एक तस्वीर ने हरेंद्र की जिंदगी बदल दी। भले ही मेरे एक लेख ने उसके जीवन में कोई बदलाव नहीं किया होगा लेकिन आज हर किसी के जहन में हरेंद्र की एक छवि बन गई हैै कि हालात कैसे भी हो…हमें सपने देखते रहना चाहिए।
हरेंद्र की मां बीमार रहती हैं और पिता ठिक से चल नहीं पाते। लेकिन बेटे को लेकर उनके सपने अपंग नहीं है। दोनों चाहते हैं कि हरेंद्र एक अच्छे इंसान के साथ साथ कामयाब भी बने। हरेंद्र बचपन में बहुत शरारती था। हमेशा ही स्कूल से शिकायत आती रहती थी। लेकिन उस वक्त पता नहीं था कि वो एक दिन हमारा इतना बड़ा सहारा बनेगा। जब से मेरा काम छुटा हरेंद्र तब से ही बेचैन रहता था, लेकिन कुछ नहीं कर पाता था। इसी साल जून में अचानक उसके दिमाग में आया और उसने हमारी हालत देखी और मशीन लेकर चल पड़ा। तब से ये मेट्रो स्टेशन पर पढ़ाई के साथ-साथ काम भी करता है। इसकी आंखें जरा कमजोर है। मैं बस सरकार से यही उम्मीद लगा रहा हूं कि इसका भविष्य संवर जाए।
20150926204047याद आता है वो दोस्त
आनंद बहुत याद आता है। मैं और आनंद स्कूल में बहुत मजे करते थे। आनंद कुछ सालों पहले अपने गांव चला गया। तब से मैंने कोई अच्छा दोस्त नहीं बनाया। आनंद और मैं पक्के दोस्त थे। वो और मैं दोनों साथ में पढ़ते थे और स्कूल में मस्ती करते थे। टीचर कहती थी इन दोनों का हक है शररातें करना।
फौजी बनना चाहता था
बचपन से ही मैं फौजी बनने का सपना देखता था। पहले पता नहीं था ये क्या होता है और कैसे। लेकिन फिर देश के लिए कुछ करने का मन होने लगा। कई बार लगा ये सपना बड़ा है कैसे पूरा होगा, लेकिन फिर मैं और आनंद दोनों ही इसी सपने में जीने लगे। कुछ समय बाद मन में आया मैं डॉक्टर बन जाता हूं, मेरी मैथ्स भी अच्छी है, लेकिन फिर आनंद ने साथ छोड़ दिया तो मैं भी पीछे हट गया। अब उसी मैथ्स का इस्तेमाल करके मैं एकाउंटेंट या बैंक में मैनेजर बनने का  सपना देखता हूं।
हरेंद्र जैसे एक नहीं हजारों बच्चे ऐसे हैं जो हर रोज इसी तरह से कोई न कोई सपना देखते हैं। बस हमें हिम्मत करनी है उनके सपनों को दुनिया के सामने लाने की और उनके हौसले को बढ़ाने की।

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