जानिए, गुजरात के इस नए ‘लौह पुरुष’ के पीछे कौन है मास्टरमाइंड
चंद रोज में ही 22 साल के हार्दिक पटेल ने गुजरात से लेकर दिल्ली तक पूरे देश की सियासत को हिलाकर रख दिया है।
कुछ समय पहले तक अगर आप गूगल पर हार्दिक का नाम टाइप करते थे तो शायद ही आपको कुछ रिजल्ट मिलता था लेकिन आज गूगल से लेकर हर एक अखबार में, सोशल मीडिया से लेकर लोगों के घरों तक बस हार्दिक ही सुनाई दे रहा है।
कुछ समय पहले तक अगर आप गूगल पर हार्दिक का नाम टाइप करते थे तो शायद ही आपको कुछ रिजल्ट मिलता था लेकिन आज गूगल से लेकर हर एक अखबार में, सोशल मीडिया से लेकर लोगों के घरों तक बस हार्दिक ही सुनाई दे रहा है।
गुजरात में लौह पुरुष के नाम से पटेल क्रांति को संचालित करने वाले इस युवा ने गुजरात सरकार को ही नहीं बल्कि केंद्र सरकार को भी हिला दिया है। मंगलवार को पाटीदार की महारैली में 10 लाख से अधिक लोगों को एक साथ एक ही मांग के लिए खड़ा करना आसान नहीं था, लेकिन हार्दिक ने इस रैली को सफल कर दिखाया। इसपर सवाल ये उठता है कि इतने कम वक्त में इतनी बड़ी मांग के साथ गुजरात जैसे राज्य में इतनी महा रैली के आयोजन के पीछे की कहानी क्या है।
भले ही हार्दिक एक मध्यवर्गीय परिवार से हैं और ग्रेजुएशन पास हैं। लेकिन जिस लय में वे इस आंदोलन को ले जा रहे हैं लगता है जैसे वे राजनीति से बहुत ज्यादा प्रभावित हैं। राजनीति से उनका नाता बहुत गहरा है।
हार्दिक ने जिस तरह से बीजेपी सरकार को ललकरा है उससे लगता है उन्हें राजनीति में आने में बहुत ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। अगले विधानसभा चुनाव तक वे पककर तैयार हो जाएंगे। उनके भाषण और अपनी मातृ भाषा में बात करने के लहजे को देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि पटेल में नेता बनने के सारे गुण हैं।
हार्दिक पटेल में नेता बनने के सारे गुण
अहमदाबाद के सहजानंद कॉलेज से हार्दिक ने 50 फीसदी से भी कम मार्क्स से ग्रेजुएशन की थी। हार्दिक के पिता भरतभाई पटेल बीजेपी के सदस्य रह चुके हैं। 2012 में ग्रेजुएशन करने के बाद हार्दिक बिजनेस में पिता की मदद करते थे और अहमदाबाद में पानी की सप्लाई करते थे। हार्दिक ने पाटीदार समुदाय के लिए सरदार पटेल सेवादल की संस्थान की 2011 में शुरुआत की थी। जो खास तौर पर महिलाओं को छेड़खानी से बचाती थी और उनकी रक्षा करती थी।
हार्दिक ने इस साल जुलाई में खुद को बिजनेस से पूरी तरह अलग कर लिया था और वे पाटीदार अनामत आंदोलन समिति से पूरी तरह जुड़ गए थे। इस युवा नेता ने अपनी पहली जनसभा मेहसाणा में 6 जुलाई को की थी। हार्दिक ने सूरत में 18 अगस्त को एक महारैली की थी, जिसमें लगभग चार लाख लोग जुटे थे। पटेलों के सबसे बड़े नेता के तौर पर खुद को स्थापित कर चुका यह युवक गुजराती से ज्यादा हिंदी में बोलता है।
सोशल मीडिया और गूगल पर छाए हार्दिक
कुछ महीने पहले हार्दिक एक कॉलेज ब्यॉय की तरह था, लेकिन आज वो गुजरात आरक्षण आंदोलन का नेता बन गया है। सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर कुछ समय पहले हार्दिक के 3 हजार फॉलोवर थे लेकिन अब वे फॉलोवर 47 हजार हो गए हैं।
पटेल क्रांति के पीछे काम करती ये थ्योरी
गुजरात के जीएमडीसी ग्राउंड में आरक्षण की मांग को लेकर महारैली का आयोजन करना और जनसभा में 10 लाख लोगों का आना आसान नहीं था। इतने लाख लोगों को एक जुट करना, उन्हें एक ही मकसद के लिए इकट्ठा करना, पार्किंग का बंदोबस्त करना, रैली के लिए इतना फंड आया कहां से। अब ये सारे सवाल उठने लगे हैं।
हार्दिक के इस आंदोलन को हवा देने के पीछे कुछ बड़े हाथ हैं। महज कुछ महीनों में ही इस पटेल क्रांति ने नया रूप ले लिया है। गुजरात के कुछ जानकार बताते हैं कि इस आंदोलन ने एक दिन में जन्म नहीं लिया है, बल्कि इसे आगे बढ़ाने के पीछे कई दिग्गजों का हाथ है।
आरएसएस और VHP का हाथ
जानकार बता रहे हैं कि इस आंदोलन के पीछे आरएसएस का समर्थन है। सामाजिक कार्यकर्ता जिग्नेनश मोवानी कहते हैं कि आरएसएस इसके पीछे हो सकता है। इस आंदोलन के जरिए केंद्र पर दबाव बनाने की कोशिश की जा रही है।
वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया के साथ हार्दिक की फोटो से और भी कई कयास लगाए जा रहे हैं। प्रवीण तोगड़िया के पीएम मोदी और आनंदीबेन से खूब अच्छे संपर्क हैं। केंद्र पर दबाव बनाने के लिए ये सब किया जा रहा है।
नीतीश कुमार और केजरीवाल से प्रभावित
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इस क्रांति के पीछे हो सकती हैं। ऐसी अटकलें लगाई जा रहीं हैं कि नीतीश कुमार का दुश्मन हार्दिक का भी दुश्मन है। दुश्मन का दुश्मन दोस्त बन जाता है। रैली के दौरान हार्दिक ने कई बार बिहार में पटेल समुदाय को आगे ले जाने में नीतीश कुमार का हाथ बताया।
हार्दिक के हाथ में केजरीवाल का टैटू इस तस्वीर ने हल्ला मचा दिया कि केजरीवाल भी हार्दिक के समर्थन में हैं और जब हार्दिक ने भरी मंच में ये कहा कि दिल्ली को जिस तरह से केजरी क्रांति ने हिला दिया ठीक ऐसी ही क्रांति की आवश्यकता गुजरात को भी है। हार्दिक के आम आदमी पार्टी से प्रभावित होने की बातें भी मीडिया में हैं।
मीडिया में खबरें हैं कि हार्दिक के ट्वीट, भाषा शैली और भाषण का केंद्रीय तत्व वही हैं, जो पहले कभी अन्ना आंदोलन के दौरान अरविंद केजरीवाल का हुआ करता था। कोई इस आंदोलन को कांग्रेस के सपोर्ट की बात भी कर रहा है, लेकिन जानकार इसे भी अफवाह ही बताते हैं क्योंकि कांग्रेस की स्थिति गुजरात में इतनी खराब है कि उसके पास नेता ही नहीं है, फिर वह तो दबे मुंह भी पटेलों की इस मांग पर टिप्पणी करने की स्थिति में नहीं है।
भाजपा का हाथ?
एक तबका ऐसा भी है जो इस पूरे आंदोलन को गुजरात बीजेपी के अंदर नेतृत्व परिवर्तन की लड़ाई से जोड़ रहा है। हालांकि लेखक अच्युत याग्निक इस थ्योरी को नकार देते हैं। वे कहते हैं कि यह एक तरह से बीजेपी का अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। लेकिन मोदी जी जिस तरह से आंदोलन के दौरान शांति बनाए रखने की अपील कर रहे हैं उससे कुछ भी कहना मुश्किल है।
आंदोलन से उठते कई बड़े सवाल
- क्या ये आंदोलन आनंदी बेन को गुजरात से हटाने के लिए है?
- क्या गुजरात के निगम चुनावों में कोई बदलाव लाना है?
- भाजपा को उखाड़ फेंकना है?
- क्या ये आंदोलन बीजेपी के विरोध में है?
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