यूपी की आग पहुंची बंगाल, धर्म के नाम पर जलता है इंसान

साल 2014 में मुजफ्फरनगर दंगा और साल 2015 में दादरी हत्याकांड के विरोध में जिस तरह से पूरा देश एक जुट हुआ, अवॉर्ड वापसी की मुहिम हो या फिर असहनशीलता पर विवाद देश के हर कोने में इसकी गूंज सुनाई दी। वहीं, साल 2016 का आगाज भी हिंसक हुआ लेकिन सब खामोश रहे। पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में गत रविवार को हुई हिंसक झड़प पर सारा देश चुप है। मीडिया से लेकर प्रशासन किसी के सिर में कोई दर्द नहीं है। ऐसा लगता है जैसे वही लोग इस मामले की आग ठंडी करने में जुटे हुए हैं।
बंगाल की आग बिहार पहुंची
बंगाल की आग बिहार के पूर्णिया तक पहुंच गई है। कल रात से वहां इस्लामिक काउंसिल के 25 हजार मुस्लिमों ने कमलेश तिवारी की फांसी की मांग की है। लोगों ने रैलियां निकाली और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ बयान देने वाले के लिए फांसी की मांग की है। बसों में तोड़-फोड़ हुई और पुलिस स्टेशन पर हमला किया गया।
जो लोग पिछले दिनों अखलाक की हत्या के विरोध में अवॉर्ड लौटाने की कतार में खड़े थे, असहनशीलता के माहौल पर हंगामा मचा रहे थे और कह रहे थे कि उन्हें देश में सांस लेने में तकलीफ हो रही है वे लोग मालदा की घटना पर चुप क्यों है। मालदा की ये घटना असहनशीलता का जीता-जागता उदाहरण है। पहले धार्मिक और फिर राजनीतिक रूप लेने वाली मालदा की ये घटना भले ही छोटी नजर आ रही है, लेकिन इसका असर बंगाल में साल 2016 में होने वाले विधानसभा चुनाव पर जरूर देखने को मिलेगा।
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आइए हम आपको मालदा में हुई हिंसा के हर तथ्य से रू-ब-रू कराते हैं
क्या आपको पता है इस हिंसा के तार कहां से जुड़े हैं। उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान ने 29 नवंबर को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बारे में कुछ आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इसकी प्रतिक्रिया में हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी ने भी पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की थी। 2 दिसंबर को सहारनपुर में मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन किया।
मुसलमानों के गुस्से को देखते हुए कमलेश तिवारी को 2 दिसंबर को ही गिरफ्तार कर लिया गया। एनएसए के तहत वे लखनऊ जेल में बंद हैं। तिवारी पर दो संप्रदायों के बीच नफरत फैलाने के आरोप में आईपीसी की धारा 153ए और धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में धारा 295A लगाई गई है। चंद रोज पहले यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कई धर्मगुरुओं के साथ बैठक की और इस मामले पर संज्ञान लिया।
बात यहां समझ नहीं आती है कि आखिर एक महीने बाद ये मामला कैसे हिंसक हुआ और यूपी की आग बंगाल तक कैसे पहुंची। इस हिंसा में घी डालने का काम किसने किया है। ये लड़ाई भले ही हिंदु-मुस्लिम की हो, लेकिन इसकी आग में पूरा मालदा जल रहा है। लेकिन बंगाल सरकार चुप बैठी है। बंगाल की किसी भी पार्टी के माथे पर कोई शिंकज नहीं है।
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क्या था मामला
रविवार को बंगाल के मालदा जिले में अचानक हिंसा भड़क उठी। दरअसल, वीएचपी नेता कमलेश तिवारी ने एक महीने पहले पैगंबर मोहम्मद पर एक विवादास्पद टिप्पणी की थी। जिसके खिलाफ रविवार को हजारों मुसलमानों ने मालदा के शुजापुर इलाके में विरोध रैली निकाली। कमलेश तिवारी की फांसी की मांग कर रहे लोगों की बेकाबू भीड़ नेशनल हाइवे पर उतर आई और हंगामा शुरू कर दिया।
मामूली बहस से बात शुरू हुई और धीरे-धीरे ये एक हिंसक झड़प में तब्दील हो गई। हिंसा ने इतना उग्र रूप ले लिया कि बीएसएफ की एक गाड़ी को आग लगा दी गई। जिले और कसबे के कई हिस्सों में तोड़-फोड़ के साथ आगजनी की गई। यहां तक की कई जगहों पर फायरिंग के साथ बम तक फोड़े गए हैं। 25 के करीब घर लूटे गए और जला भी दिए गए। कालियाचक पुलिस स्टेशन पर भी हमला हुआ। बेकाबू हालात को देखते हुए किसी अप्रत्याशित घटना से बचने के लिए धारा 144 लागू कर दी गई।बुधवार को गृह मंत्रालय ने बंगाल सरकार से पूरे मामले की रिपोर्ट मांगी है और बीजेपी विधायक शामिक भट्टाचार्य और 10 समर्थकों को हिरासत में ले लिया गया है।
मीडिया ने बनाई दूरी
यह मामला अब तक की बड़ी हिंसक घटनाओं में से एक है। लेकिन इस घटना को कोई मीडिया कवर नहीं कर रहा है। जबकि इससे पहले जो भी घटनाएं हुईं उन पर मीडिया के फोकस के कारण ही आपोरियों को सजा मिली है। ऐसा भी कहा जा रहा है मुस्लिम समुदायों की तादात अधिक होने के कारण भी मीडिया इसको कवर करने से बच रही है। 
चश्मदीद का बयान
इस घटना को उग्र रूप लेते कई लोगों ने देखा है। 19 साल के गोपाल का कहना है जब वह एक शनि मंदिर में था उस समय एक बड़ा दल उसकी ओर दौड़ता हुआ आया जिसको देख कर वह भागने लगा। उन लोगों ने मेरे पैर पर गोली मार दी। कई लोग इस हिंसा में गंभीर रूप से घायल हुए हैं।
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आरोपियों पर कार्रवाई
पश्चिम बंगाल के मालदा के कालियाचक पुलिस स्‍टेशन पर हुए हमले के मामले में 48 घंटे बाद 10 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इन पर धारा 147, 148, 149, 353, 332, 323, 225, 427, 435, 436 और 186 के तहत मामला दर्ज किया गया है। डिप्‍टी सुपरिटेंडेंट दिलीप हाजरा ने बताया कि जिन्‍हें गिरफ्तार किया और जिनके खिलाफ गैर जमानती धाराएं लगाई गई। हम मामले की जांच कर रहे हैं। आगे और गिरफ्तारियां हो सकती हैं।
संगठन का  पक्ष
तीन जनवरी को रैली आयोजित करने वाले संगठन इदारा ए शरिया ने कहा कि उनकी रैली शांतिपूर्ण तरीके से चल रही थी और पुलिस ने हिंसा की शुरुआत की और बाद में बाहरी लोगों ने हमला किया।
हमने हमारे पैगंबर के अपमान के खिलाफ शांतिपूर्ण मार्च आयोजित किया था। जब हमने कालियाचक पुलिस स्‍टेशन के बाहर कमलेश तिवारी का पुतला जलाना चाहा तो पुलिस ने पहले आपत्ति जताई और बाद में लाठीचार्ज किया। हमारा कोई सदस्‍य हिंसा में शामिल नहीं था। पुलिस स्‍टेशन में तोड़फोड़ से हमारा कोई लेना देना नहीं है। यह सब असामाजिक तत्‍वों ने किया जो भीड़ में शामिल हो गए और पुलिस पर अपना गुस्‍सा उतारा।
ममता सरकार पर सवाल
ममता बनर्जी का कानून कुछ समझ नहीं आता। अगर बिहार में लालू यादव के राज में हो रही हिंसा और अपराध को देखते हुए बिहार को जंगलराज घोषित किया जाता है तो बंगाल में क्या हाल है। दीदी का राज दंगा राज बनता जा रह है। आपको याद है कि कुछ समय पहले टूकटूकी मंडल की कहानी। जिसे डेरेक ओब्रेन ने छिपाने की कोशिश की थी, ये कहकर कि ये तो संघी साजिश है। इस बात से कोई अंजान नहीं है कि ममता का रिश्ता इस्लामिक संगठनों से रहा है। इस बात के भी कई सबूत मिले हैं जिससे साफ पता चलता है कि टीएमसी बांग्लादेशी आतंकी संगठनों को फंड देती है। सारधा घोटाला क्या कम है। चुनाव आने वाले हैं और ममता सरकार अपनी साख बचाने में जुटी है।

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