Lockdown Day 5-घर पर रहकर एक जिम्मेदारी निभा लो..बस डरना छोड़ दो..बनो बेफिकर बादशाह..
जैसे जैसे दिन जा रहे हैं बेचैनी बढती जा रही है,ऐसा लगता है जैसे आने वाले दिनों में अब और क्या होगा.क्योंकि सब कुछ इतना अनिश्चित होता जा रहा है कि अब लगता है आगे का कुछ भी तय नहीं किया जा सकता है। सरकारें अपना काम कर रही हैं,डॉक्टर्स अपना काम, मीडिया अपना। जिसको जो जिम्मेदारी मिली है वो वही कर रहा है। बल्कि उससे बढकर ही कर रहा है। आप और मैं भी भी अपनी जिम्मेदारी निभा सकते हैं। मैं आपसे फिर से वही नहीं कहूंगी कि आप घर पर रहें,सेफ रहें, बाहर न जाएं। आप ऐसा कर रहे हैं। तभी शायद हम दूसरे देशों के मुकाबले बेहतर स्थिति में हैं। लेकिन मैं आपसे ये कहूंगी कि आप इस समय में अपने आप को तैयार करें कि आगे जो भी होगा आप उसे हिम्मेत से फेस करेंगे।
आपको पता है आज कोरोना से ज्यादा आपके अंदर का डर आपको खा रहा है। इसमें मैं भी शामिल हूं,मैं नहीं कहती मैं झांसी की रानी हूं, लेकिन हां मैं अपने 1 परसेंट अगर डर रही हूं तो 99 परसेंट मैं खुद को तैयार कर रही हूं कि आने वाला वक्त कुछ भी हो सकता है, कोई भी रंग दिखा सकता है। आप भी खुद को इतना संयमी,आत्मनिर्भर और निडर बनाएं कि कोई भी बिजली जैसे अचानक गिरने वाली परिस्थिति आपका मनोवल तो़ड़ न दे, आपको इतना बेचैन न बना दें। किसी रिश्ते,किसी चीज और किसी आदत के इतनी आदी मत हो जाएं कि जीवन से जब वो छूटे तो बिखरने लगें। मैं जीवन में निरसता लाने की बात नहीं कर रही हूं, लेकिन जीवन को बेफिकर बादशाह होकर जीने की बात कर रही हूं, तभी आप खुश रह पाएंगे। आपको कुछ भी खोने का डर नहीं रहेगा। ये वक्त यही सिखाने आया है, हम बहुत कुछ अनचाही चीजों के रिश्तों के गुलाम हो गए थे। अपनी इंद्रीय के भी। हमें उन सब से आजाद होना सिखना है।
मैं आपसे इसी जिम्मेदारी निभाने की बात कर रहूी हूं,आप अपने प्रति इस जिम्मेदारी को निभााएँ। डरना छोड़ दें। आपको डर है कि आने वाले दिनों और क्या खो जाएगा, क्यो होगा, नौकरी, पैसे,लोग,सुरक्षा कितना कुछ बिखर जाएगा,सब खत्म हो जाएगा, आपका क्या होगा, कितना नुकसान होगा, मत डरिए...जो हो रहा है वो होना था और अब जो होगा वो भी तय है। तो क्यों ना हम बस खुद को इतना सक्षम बनायें कि जो भी होगा वो आप पर हावी नहीं होगा।
मुझे पता है ये स्थिति बहुत कठिन आई है, कहना आसान है लेकिन पार करना मुश्किल...फिर भी कह रहीं हूं उन लोगों के बारे में सोचकर जो आज सड़क पर हैं,पैदल चलकर अपने गांव जा रहे हैं, खाने पीने की तलाश में। आप घरों में हैं सुरक्षित और फोन पर इंटरनेट चला रहे हैं। महीने से ज्यादा का राशन है और आराम से टीवी के सामने जिंदगी कट रही है, फिर भी चिंता है। जो अकेले हैं, घरों से दूर, अपने अपनों से दूर,मेरे जैसी हजारों लड़कियां इस शहर में काम करती हूैं,जो पीजी या किसी कमरे में अकेली रहती हूैं।कितनी हैं जो पत्रकार हैं अकेले आफिस जा रही हूैं इन हालातों में उनके बारे में सोचकर थोडा हल्के हो जाएं और सब कुछ परमात्मा पर छोड दें। सब ठीक होगा।
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