मन की आजादी हमें जिंदगी के और पास ले आती है
जिस दिन से हमें जीवन मिलता है और जब तक हम मरते हैं, हम कहीं ना कहीं किसी ना किसी की मदद लेते ही हैं। हमें ऐसी आदत हो गई है किसी भी इंसान या बस्तु पर निर्भर होने की अगर वो सहारा हमारे पास ना हो तो हम निहत्था महसूस करने लगते हैं। अगर वो सहारा हमसे दूर होता है तो क्या हम अकेले चल पाएंगे। क्या हम अकेले खड़े रह पाएंगे। इसलिए बेहतर है एक हद तक किसी पर निर्भरता, वक्त वक्त पर अपने अंदर की चेकिंग करें और अंदर से एक आत्मनिर्भरता पैदा करें। ताकि अगर वो इंसान या वस्तु हमसे दूर हो भी जाए हम आगे बढ़ पाएं। रुक ना जाएं।
पैदा होते ही हमें माता-पिता का सहारा लेना पडता है, थोड़े बड़े होते ही शिक्षक और गुरुओं की मदद लेनी पड़ती है। आगे बढने और दुनिया का सामना करने के लिए कुछ साथी और दोस्तों की जरूरत होती है। एक छोटी सी जिंदगी में जब तक हम जीते हैं हर कदम और हर पड़ाव पर हमें किसी ना किसी रिश्ते की जरूरत होती है। 20-30 साल की उम्र में लाइफ पार्टनर और एक अच्छे करियर की। जब थोडे पैसे जमा होते हैं तब एक बेहतरीन जिंदगी, आराम की लाइफस्टाइल चाहिए होती है। जैसे ही शादी होती है अपने बच्चों को वो सब देने की जरूरत लगने लगती है जो हमें अपनी जिंदगी में नहीं मिला।
हम सोच ही नहीं पाते हैं कि ऐसा करके हम उन सबको जो हमारे आस-पास होते हैं उन्हें आत्मनिर्भर नहीं बल्कि निर्भरशील बनाते हैं। जैसे ही जीवन के बीच के पड़ाव में हम होते हैं, पुरानी यादें और दोस्त हमें याद आने लगते हैं। पुराने दोस्तों का साथ और उनका सपोर्ट सबसे ज्यादा चाहिए होता है। अपने आखिरी वक्त में हमें याद आता है वो परमात्मा या वो अंतिम सहारा। ये सच में बहुत ही चौंकाने वाली बात है कि आध्यात्म हमें उन सब निर्भरशील सहारों से मुक्त होने में मदद करता है। हमें इतना आत्म निर्भर बना देता है कि हम खुद को इतना पावरफुल महसूस करने लगते हैं जिसकी कोई सीमा नहीं है। शारीरिक और मानसिक दोनों रुप से हमारे अकेलेपन को दूर करता है आध्यात्म।
आज हमसे कितने लोग ऐसे हैं जो ये कहते हैं हम स्वतंत्र हैं। कितने हैं ऐसे जो अंदर से और बाहर से मुक्त हैं। कहीं ना कहीं किसी ना किसी चीज से आसक्त हैं। परमात्मा का ज्ञान और उससे आपका कनेक्शन आपको आजाद पंक्षी की तरह बना देता है। दरअसल, हम केवल इंसान या वस्तु से जुड़े नहीं, पुरानी यादें, कड़वी बातें और लोग जो हमारा अतीत है हम उसमें ही जकड़े हैं आज भी। मुक्त होने की लालसा हमें परमात्मा के और करीब ले आती है।
आत्मा अकेले आती है और अकेले ही चली जाती है। ये शरीर ही केवल इस दुनिया में आकर लोगों से बंध जाता है और जकड़ जाता है एक अनचाही डोर में। आत्मा की अपनी ही जर्नी है। आत्मा को किसी के सहारे की जरूरत नहीं है। आत्मा अपने आप में पूरी और सक्षम है। दुनिया की भीड़ में बस हम खो गए हैं और भूल गए हैं अपने असल रूप को। जिस दिन हम अंदर की आंख और चेतना से हर चीज को समझने और परखने का अभ्यास करना शुरु कर देंगे सब कुछ बेहतर हो जाएगा। एक नई दुनिया में ही चले जाएंगे हम। अपने अंदर की आजादी महसूस करना ही आध्यात्म है। हर पर खुद पर निर्भर हों। अपने सिद्धान्त खुद लें। अपनी पहचान करें।
आपकी खुशी किसी चीज या सहारे या इंसान पर निर्भर नहीं होनी चाहिए। हमारी खुशी हमपर है। हम अपने अंदर से खुश रह सकते हैं। जब शांति और सहयोग चाहिए हम खुद अपने अंदर उसे महसूस कर सकते हैं। हम कर सकते हैं हम कर सकते हैं हम करेंगे ये है अंदर की स्वतंत्रता। अपने अंदर के बंधन को तोड़कर दुनिया की तरफ आगे बढ़ो। जिंदगी आपके कदम चूमेगी।
x
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें