परमात्मा की प्लानिंग हमसे बेहतरीन
कई बार हमारे हाथ में नहीं होता कुछ, हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ और जाता है। प्लानिंग हम नहीं करते, परमात्मा की प्लानिंग हमसे बहुत आगे होती है। कई बार तो रिश्तों को सही करने तक का वक्त नहीं मिलता। बस आप चलते जाते हैं। कुछ बिखर रहा है दूर हो रहा है पता नहीं होता। और जैसे ही कभी रुकते हैं तब समझ आता है आखिर क्या किया और क्या कर रहे हैं। मेरे हाथ से भी ठीक इसी तरह से सारे रिश्ते फिसलते गए। मुझे समझ तक नहीं आया और जब रियलाइज हुआ तब लगा ये क्या हो गया। कहां खो गया सब। मैं क्या करना चाहती थी और क्या कर बैठी। सही है या गलत। कुछ गलत हो गया।
आप ही बताएं। ऐसे में इंसान क्या महसूस करे। उसे दुख करना चाहिए। या फिर इसे नियति और वक्त का खेल समझकर जो मिला बस उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। पानी की तरह वक्त के इस बहाव में मैं भी बहती चली गई। तो मैंने गलत तो नहीं किया ना कुछ। ये सवाल एक बार तो मन को तकलीफ देता है कि आखिर ये तो नहीं चाहती थी मैं। लेकिन फिर सुकून मिलता है ये सोचकर कि परमात्मा ने कुछ अच्छा ही सोचकर झोली में रास्ते में सफर में ये सब दिया है मुझे। जो उसे मंजूर था उसकी प्लानिंग थी, जो मेरे लिये सही था उसने वही दिया है। वो ही मुझे मिला। यही मेरे लिए सही था शायद। बस फिर से चलना शुरू कर देती हूं। शायद नहीं पक्का यही सही था क्योंकि ये परमात्मा की इच्छा है।
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