वाह राजनीति@ इन नेताओं का अपना इमान है क्या ?

एक पत्रकार होकर भी मुझे अब तक देश  की राजनीति नहीं समझ आई। मेरा मतलब है क्या इनकी कोई जात होती है। कोई धर्म या कोई उसूल। ऐसे नेता और पार्टी के हाथ में हम अपना देश, अपनी सुरक्षा और अपने अधिकार सौँपते हैं जिनके शब्दों की अपने बयान की और अपने फैसले की कोई इज्जत नहीं है। वे कभी कुछ कहते हैं और कभी कुछ। 

आज एक साथ राजनीति में दो ऐसे दृश्य देखने को मिले जो सच में शर्मनाक लगे। एक मायाबती (सपा और बसपा) अरसों से यूपी की राजनीति में कट्टर दुशमन, आज एक साथ एक ही मंच पर एक दूसरे के नाम के कसीदे पढ़ रहे हैं। कल तक हर चुनाव से पहले, एक दूसरे को ये कहकर गालियां देते थे कि अगली पार्टी ने कुछ नहीं किया। दलितों से खिलवाड़ किया, विकास नहीं किया। बहुत कुछ। आज सब कुछ भूल कर मान भूलाकर एक दूसरे के नाम पर कसीदे पढ़ रहे हैं। हद है राजनीति। कैसे कोई किसी पर यकीन करे। कैसे पलट जाते हैं ये नेता। जहां स्वार्थ दिखा पलटी खाली। गंदी राजनीति। इनकी बातों का वादों का कोई तब्बजों नहीं है। इनपर जनता कैसे भरोसा करे। 

वहीं प्रियंका चर्तुवेदी, उसे देखो कल तक कांग्रेस के लिए पैनेल में बैठती थी और कांग्रेस ही सब कुछ, आज एक पल में कांग्रेस बेकार हो गई, मैं कांग्रेस से खफा हूं, कांग्रेस ने नाराज किया मुझे। क्या ही बोले। आज शिवसेना प्यारी हो गई। क्या यही राजनीति है। वैसे अगर सबसे पुराने दुशमन लालू आर नीतिश की बात करें तो भी वही बात सामने आएगी। एक दूसरे  को गाली गलौच करने वाले आज गठबंधन कर एक दूसरे के साथ हैं। क्या हैं ये लोग। बेकार। एक दूसरे  को काटकर मार डालने वाले फिर एक दूसरे से मामा मियां करते हैं। 

वाह राजनीति, एकदम से कोई अपना और एकदम से कोई उतना पराया। गंदी राजनीति और गंदी सोच। इन नेताओं पर भरोसा एक धोखे जैसा है। इनका अपना कोई इमान नहीं है। 

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