Story behind the story

कभी कभी अपने काम पर बहुत गुस्सा आता है। बताती हूं क्यों, एक किस्सा सुनाती हूं। पिछले दिनों एक जगह गई थी अपनी खबर के लिए। एक सरकारी दफ्तर। वैसे तो पत्रकारों को पूरी छूट है कि वो कहीं भी जा सकते हैं लेकिन फिर भी हम सिस्टम मेंटेन करते हैं। मैंने पहले पीए से बात की दरवाजा नॉक किया फिर अंदर गई। 

पता चला अफसर नहीं है। ठीक है फिर दूसरे अफसर के पास। ऐसे करके मैं कई कमरों में गई तरीके के साथ । लेकिन जैसे ही एक और दरवाजा नॉक किया, गेट नहीं खुला तभी बाहर से चिल्लाते हुए एक बदतमीज इंसान आया। कहने लगा तमीज नहीं है आप कौन हैं कमरों में घुस रही हैं। आपको पता नहीं है। जाईए यहां से। और एक दम से खुंखार जानवर। मेरे शब्द नहीं है उस इंसान के शब्द दोहराने के। इतना ही जानवर। मैंने फिर बोलना शुरू किया। आपको नहीं तमीज है बात करने की। मुझे मत बताएं सिस्टम। मैं पत्रकार हूं। चलो अगर नहीं भी हूं आम इंसान हूं तब भी एक लडकी से आपको शर्म नहीं है कैसे लहजे में बात होती है। 

वो पागल था शायद या एक सरकारी नौकर जिसकी गर्मी थी उसमें। खैर एक पल को तो इतनी गालियां देने का मन था उसे। आस पास के लोगों ने कहा माफ करिए उसे पता नहीं है। वो पागल सा है। मैंने कहा चाहूं तो इसकी बैंड बजा दूं। पहली बात मैंने कुछ गलत नहीं किया और दूसरी चीज मैं डरूं ऐसा कुछ भी नहीं था। ऐसे में उसकी क्या हालत कर सकती हूं मैं। बाद में लगा इस प्रोफेशन में ऐसे कई  लोग मिलते हैं पागल से। क्या करें।

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