बारिश वही है, मौसम वही, बूंदें वहीं हैं.....लेकिन एहसास कहीं गुम सा है, मिट्टी की
खुशबू कुछ बदली सी है,
अब बदन भिगता तो है लेकिन रूह तक छांटें नहीं जाती।
अब पानी तो बरसता है, लेकिन बरसातें वो नहीं हैं, हवा की सिरसिराहट अब वो शिरहन
नहीं पैदा करती।
हाथों में गिरने वाली बूंदें अब शीतल नहीं लगती
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