मौत तो एक पल है बाबू मोशाय.....

जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, जिसे ना आप बदल सकते हैं ना मैं। हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर उपर वाले के हाथ बंधी हैं, कब, कौन, कैसे उठेगा, ये कोई नहीं जानता।

मौत तू एक कविता है
मुझसे इक कविता का वादा है
मिलेगी मुझको
डूबती नब्जों में जब दर्द को नींद आने लगे.....
क्या फर्क हैं 70 साल और 6 महीने में। मौत तो एक पल है बाबू मोशाय। 

जिदंगी से प्यार करने वाले और मौत को एक कविता समझने वाले बॉलीवुड के लोकप्रिय अभिनेता राजेश खन्ना फिल्मी दुनिया में मुहब्बत के फरीस्ते के नाम से जाने जाते हैं। 29 दिसंबर 1942 में राजेश खन्ना ने अमृतसर में जन्म लिया। राजेश खन्ना का असली नाम जतिन खन्ना है। 24 साल की उम्र में आखिरी खत नामक फिल्म से उनकी फिल्मी करियर की शुरूआत हुई थी। इसके बाद राज, बहारों के सपने, औरत के रूप जैसी कई फिल्मों में उन्होंने काम किया लेकिन उन्हें असली कामयाबी 1969 में आराधना से मिली। इसके बाद एक के बाद एक 14 सुपरहिट फिल्में देकर उन्होंने हिंदी फिल्मों के पहले सुपरस्टार का तमगा अपने नाम किया।
1971 में राजेश खन्ना ने कटी पतंग,आनंद,आन मिलो सजना, महबूब की मेंहदी, हाथी मेरे साथी, अंदाज नामक फिल्मों से अपनी कामयाबी का परचम लहराये रखा। बाद के दिनों में दो रास्ते, दुश्मन, बावर्ची, मेरे जीवन साथी, जोरू का गुलाम, अनुराग, दाग, नमक हराम, हमशक्ल जैसी फिल्में भी कामयाब रहीं। 1980 के बाद राजेश खन्ना का दौर खत्म होने लगा। 

राजनीति में पहला कदम
फिल्मों से हटकर उन्होंने 1991 में राजनीति में अपना कदम जमाने की तैयारी की। इसी साल वह नई दिल्ली से कांग्रेस की टिकट पर संसद सदस्य चुने गए। 1994 में उन्होंने एक बार फिर खुदाई फिल्म से परदे पर वापसी की कोशिश की। आ अब लौट चलें, क्या दिल ने कहा, जाना, वफा जैसी फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया लेकिन इन फिल्मों को कोई खास सफलता नहीं मिली।
उनकी फिल्मी जिंदगी में टर्निंग पॉयंट लाने वाले फिल्मों में आनंद का नाम सबसे पहले आता है। आनंद बॉलीवुड की ऐतिहासिक फिल्मों में से एक है। हृषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित आनंद उन गिनीचुनी फिल्मों में से एक है जिसे 41 साल बाद भी दिल भूल नहीं पाता है। फिल्म में चित्रित किया गया है कि किस तरह से एक मरता हुआ आदमी प्यार और मजाक से पूरी दुनिया को खुशियां बांट सकता है और सब का दिल जीत सकता है। हृषिकेश मुखर्जी ने एक नये कलाकार अमिताभ बच्चन की जोड़ी उस समय के बड़े अभिनेता राजेश खन्ना के साथ बनाई।
फिल्म की कहानी एक कैंसर से पीडि़त रोगी आनंद की है जो जिंदगी को हंस खेल कर जीना चाहता है किंतु उसके पास समय बहुत कम है।
यही हुआ उनकी असल जिदंगी के साथ भी। पिछले लंबे समय से जिंदगी और मौत से लड़ रहे काका बाबू ने मौत के आगे घुटने टेक दिए। मौत को कविता मानने वाले राजेश खन्ना ने आखिरकार अपने घर पर ही हंसते हंसते दम तोड़ दिया।

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