दूसरा कश्मीर बनने की राह पर असम


असम। असम में पिछले सात दिनों से फैली हिंसा को लेकर अब सियायत गर्मा गई है। इसको लेकर सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर भी लोगों ने विरोध और अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करना शुरू कर दिया है। फेसबुक की प्रतिक्रियाओं में अधिकतर लोगों ने असम में फैली हिंसा के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। कुछ लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया में यहां तक लिखा है कि जब एक तरफ असम सांप्रदायिक दंगों की आग में जल रहा था, उस वक्त देश के महामहिम 21 तोपों की सलामी ले रहे थे।
फेसबुक पर दी गई प्रतिक्रियाओं में लोगों का मानना है कि सरकार ने हमेशा ही उत्तर पूर्वी इलाकों के लोगों की अवहेलना की है। यही वजह है कि सरकार के प्रति उनका आक्रोश फूट कर बाहर निकल रहा है। असम में अल्पसंख्यक लोगों का विकास ना के बराबर हुआ है। गरीबी ने असम की प्रगति को रोक रखा है। आज भी असम के लोग खुदको अन्य राज्यों से पिछड़ा व अलग महसूस करते हैं। ऐसे में उनमें सरकार के खिलाफ विरोध की मंशा पैदा होना स्वाभाविक है।

भाजपा ने भी केंद्र पर साधा निशाना

भाजपा प्रवक्ता राजीव प्रताप रूड़ी ने असम की घटना को सांप्रदायिक दंगा करार देते हुए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से जवाब मांगा। उन्होंने कहा कि डॉ. सिंह प्रधानमंत्री के साथ ही असम के सांसद भी हैं, उन्हें जवाब देना होगा कि जब सैकड़ों लोग मारे जा रहे हैं तो राज्य व केंद्र की सरकारें चुप क्यों बैठी हैं।
असम की हिंसा की जांच के लिए जहां भाजपा का प्रतिनिधिमंडल असम पहुंच गया है। असम गए प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे पार्टी महासचिव विजय गोयल ने पूरी घटना के लिए सीमा से हो रही घुसपैठ को वजह करार दिया है।

आखिर कैसी फैली हिंसा

कुछ दिनों पहले असम में दो अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र नेताओं पर हुए हमले के बाद से बोड़ो क्षेत्रीय परिषद बीटीसी के कोकराझाड़ जिले में जो हिंसा शुरू हुई थी वही हिंसा अब असम के चिरांग और धुबड़ी जिलों में भी फैल गई है।

कोकराझाड़ के एक गांव से अपनी जान बचाकर राहत शिविर पहुंचे अजीज उल हक ने बोडो नेताओं पर पूरे विवाद का ठीकरा फोड़ते हुए कहा, शुरूआत में बोडो नेताओं ने हमसे आकर कहा कि हम लोग उन जगहों पर चले जाएं, जहां हमारे समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। हम लोग अपने गांव के नजदीकी एक जगह पर ठहर गए। इसके बाद हमलावरों को हमारे खाली घरों को आग लगाने का मौका मिल गया। इसके अलावा हमलावरों ने उस जगह को भी घेर लिया जहां हम लोग इक_ा हुए थे।

हिंसा के कारण के तौर पर अलग-अलग दावे और राय सामने आ रहे हैं। असम हिंसा के पीछे कई कारण हैं, जिनमें कुछ तात्कालिक हैं तो कुछ वजहें काफी पहले से समस्या बनी हुई हैं। बांग्लादेश से आ रहे अवैध प्रवासी ही असम में जारी हिंसा की मूल वजह बताए जा रहे हैं।
असम के मूल निवासियों का कहना है कि बांग्लादेश से लगातार भारत में अवैध रूप से घुस रहे लोगों की वजह से वे असुरक्षित महसूस करते हैं। असम के मूल निवासियों का कहना है कि प्रवासियों के चलते इस क्षेत्र का संतुलन बिगड़ गया है।
गौरतलब है कि भारत-बांग्लादेश की पूरी सीमा पर तारबंदी ना होने और नदियों के चलते सीमा के उस पार से भारत में प्रवेश करना कोई मुश्किल काम नहीं है। ऐसे में बड़ी तादाद में बांग्लादेशी लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में भारत में प्रवेश करते रहे हैं।

जानकारों का मानना है कि 1971 के बाद से बांग्लादेशियों का भारत आकर बसना जारी है। असम के नेताओं पर आरोप है कि वे इन अवैध प्रवासियों को पहचान पत्र दे देते हैं, ताकि वे उनके हक में वोट करें। यहीं पर आकर स्थानीय लोगों का आक्रोष बढ़ जाता है।

केंद्र सरकार के लिए यह सब कोई बड़ी बात नहीं है। हालांकि असम में हिंसा में बांग्लादेश का हाथ होने की आशंका को केंद्र सरकार ने खारिज कर दिया है। केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने इस बारे में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा को सील कर दिया गया है। ऐसे में किसी भी बड़े ग्र्रुप का सीमा पार करना असंभव है।
असम के दौरे पर बुधवार को गुवाहाटी पहुंचे बांग्लादेश के विदेश सचिव ने अवैध रूप से रह रहे प्रवासियों को हिंसा की मूल वजह मानने से इनकार कर दिया है। असम के कई जिलों, खासकर कोकराझार में फैली हिंसा के लिए बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल बीटीसी के गठन में खामियों को भी स्थानीय बोडो समुदाय और प्रवासी अल्पसंख्यकों के बीच संघर्ष बीटीसी के गठन के बाद भी जारी है। गैर बोडो समुदाय के लोगों की शिकायत है कि बोडोलैंड टेरीटोरियल एरियाज डिस्ट्रिक्ट [बीटीएडी] में बोडो समुदाय अल्पसंख्यक है। इनकी आबादी कुल आबादी की एक-तिहाई है। बीटीएडी इलाकों में रह रहे गैर बोडो लोगों की शिकायत है कि बहुसंख्यक होने के बावजूद उन्हें कई अधिकारों से वंचित रखा गया है।

बोडो समुदाय शिकायत करता रहा है कि अवैध प्रवासी उनके इलाकों में आकर आदिवासियों की जमीन पर बस जाते हैं। बोडो समुदाय के लोगों का कहना है कि बांग्लादेश से सटी सीमा को सील करने की उनकी मांग पूरी नहीं हो रही है। इस समुदाय का कहना है कि बोडो काउंसिल एक्ट गैर बोडो समुदाय के लिए वरदान है क्योंकि यह एक्ट गैर बोडो लोगों के जमीन के हक को वैधता देता है। वहीं, इस एक्ट का वह प्रावधान भी बोडो समुदाय को खटकता है, जिसमें बोडो या गैर बोडो समुदाय के किसी भी नागरिक के जमीन के मालिकाना हक से जुड़े अधिकार को बरकरार रखा गया है। लेकिन असम में हिंसा के पीछे प्रदेश के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को गरीबी वजह के तौर पर दिखाई देती है। गोगोई ने एक साक्षातकार में इसे वोट बैंक की राजनीति करार दिया है। हालांकि उन्होंने कहा कि वह अपनी अर्थव्यवस्था को बेहतर करेंगे। ऐसा करके ही उन समस्याओं का समाधान किया जा सकेगा।

असम आज भी एक गरीब और पिछड़ा राच्य माना जाता है। योजना आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2010 तक असम के 37.9 फीसदी लोग गरीबी रेखा से नीचे रह रहे थे। असम में गरीबी के आंकड़े बढ़े हैं। 2004-05 में 34.4 फीसदी लोग ही वहां गरीबी रेखा से नीचे रहते थे।


राज्य सरकार को ठहराया जिम्मेदार

इस मामले में कोकराझाड़ में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक में बीटीसी के मुख्य कार्यकारी पार्षद हाग्रामा मोहिलारी ने असम में बढ़ती इस हिंसा के लिए  राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए  आरोप लगाया है कि प्रशासन ने सुरक्षा बल मुहैया कराने में काफी देर की जिसकी वजह से हिंसा पर समय से काबू कर पाना मुश्किल हो गया। मोहिलारी ने राज्य सरकार से बीटीसी इलाके में सेना को तैनात करने का भी अनुरोध किया था।

इस दौरान असम के बाकी हिस्सों में हिंसा की आंच तब महसूस की गई जब असम से बाहर जाने के एकमात्र मार्ग कोकराझाड़ जिले में फैले दंगों के कारण विभिन्न ट्रेनों को पश्चिम बंगाल और असम के विभिन्न स्टेशनों पर रोक लिया गया।

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