खुदा

गई तो थी आज उस खुदा से लड़ने-झगड़ने। अपने इम्तहानों का हिसाब लेने। अपने इंतजार का सबूर, थोड़ी सा विश्वास और तसल्ली मांगने, लेकिन कमवक्त आज सफेद रंग के ऐसे खूबसूरत से लिबाज में घूंघठ ओढ़े बैठा था कि कुछ कहा ही नहीं गया। बस उसके चमकते चेहरे और खामोश आंखों को देखकर ही लौट आई। उसकी खामोश आंखें और झुकी हुईं पल्के सब कह गई। उसकी रोशनी जैसे फिर से अंधेरे जीवन में उजाला कर गई। जीने का सबब सीखा गई वो चांदनी। कुछ न कहकर भी सब कुछ कह गई वो रात। चांद रात, चांद की वो रोशनी, चमकती चांदनी जैसे खुदा ने ही भेजा था इन्हें...मेरे पास....मेरे अधुरे सवालों का जवाब देने। 
                                                  




                                                                  

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट