सिसकिया तुझे बुलाती हैं..." मां "

पानी की बूंद में तेरा चेहरा नजर आता है, 

सर्दियों में कांपती तेरी आवाज मुझे बुलाती है

गर्मियों की धूप से निकलती जलन मुझे रुलाती है

रात की चादर में भीगे वो तकीये की सिसकिया तुम्हें उठाती हैं

भीड़ में चलता वो अकेलापन तुझे जगाता है

रोजाना मिली जीवन की सीख में तुझे ढूंढते हैं

घर के चुल्हे में बनी तेरी रोटियां याद आती है

खुली छत के नीचे कही तेरी बातें रोज जगाती है

मां तेरा चेहरा मेरे आंसुओं की बाढ़ में बार-बार उतरकर आता है 

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