तुम्हारे जीवन में तो सवेरा
हो गया, लेकिन हमारी उन अंधेरी रातों का क्या जिसमें और काले बादल छा गए।
उम्मीदों का दामन थाम सपनों की चादर ओढ़कर हम कब का सो गए थे,
और जब तक आंख खुली तब तक तुम अपना नया जहां बसा चुके
थे।
हमने तो आज भी उन्हीं ख्वाबों की डोर से बंधे हैं जिन्हें तुम कबका तोड़कर जा चुके हो।
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