West Bengal Village Women: 10 औरतों की संघर्षभरी कहानियां

हम बड़े लोग अपनी हर परेशानी को भी बहुत बड़ा समझते हैं ना, क्योंकि हमें फुरसत ही नहीं होती अपने आस-पास देखने की, छोटे लोगों की छोटी परेशानियों को महसूस करने की। दरअसल, हमारी महसूसता की शक्ति खत्म सी हो गई है। हमें अपने अलावा न तो कुछ दिखाई देता है और ना ही सुनाई देता है। लेकिन जिंदगी में कुछ ऐसे भी लोग हैं जिनकी जिंदगी ही एक परेशानी हैै, फिर भी वो चले जा रहे हैं और हमें जीने का सबब दे रहे हैं। मैं बंगाल के एक छोटे से गांव का एक अनुभव आपसे आज साझा करती हूं। जहां 100 से भी ज्यादा ऐसी महिलाएं रहती हैं जिनके या तो पति नहीं हैं या फिर पति होकर भी नहीं होने के बराबर है, या किसी के पति ने दूसरी शादी कर ली, या कोई गांव से बाहर शहर काम करने गया हुआ है या फिर कोई शराब पीकर रोज अपनी पत्नियों को मारता-पीटता है। ये उनकी जिंदगी है। 

वैसे आपको सुनकर लग रहा होगा ये तो हर गांव में आम बात है, हां होगी लेकिन क्या हमने इसी आम बात को कभी महसूस किया है, कभी एक औरत की भी कहानी को करीब से जानने की कोशिश की है। मैंने की है और जब मैंने जाना तो खुद को बहुत ही असहाय पाया। किसी के पति ने उसे इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसको बस लड़कियां ही हो रही थी, वो लड़का देने के काबिल नहीं थी, किसी का पति उसे कबका छोड़ कर चला गया लेकिन कहां गया इतने सालों से किसी को कुछ नहीं पता। कितने बच्चों के माता-पिता ही नहीं हैं, शायद जन्म से ही वे अपनी नानी या दादी या फिर मामा के गोद में पले बड़े हुए हैं। किसी का बाप उन्हें छोड़कर चला गया तो किसी की मां ने दूसरी शादी कर ली। उस गांव के हर घर की ऐसी ही एक कहानी है।

बिमला बताती है कि जब वो शादी करके आई तो उसे ठीक से खाना नहीं पकाना आता था, क्योंकि वो महज 13 साल की थी, उसकी ननंद ने उसके हाथ जला दिए थे, जिसके बाद उसने खाना पकाना सिख लिया। पूजा बताती है कि जब उसकी शादी हुई उसके तुरंत बाद ही वो शहर चली गई काम करने के लिए। उसने दिन में 50 बोरे सिमेंट के ढोए हैं, 18 की उम्र में ही उसे दो बच्चे हो गए। आशा बताती हैं कि दो बच्चों के जन्म के बाद ही उसका पति कहीं चला गया, आज तक नहीं पता वो जिंदा है या मर गया। इसलिए उसने आज तक अपना सिंदूर नहीं मिटाया, क्योंकि उसने अपने पति को मरते हुए अपनी आंखों से नहीं देखा। बीना बताती हैं कि उसके पति ने उसे इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसे दो बेटियां हैं लेकिन एक भी बेटा नहीं है। आज वो अपने माता-पिता के घर रहकर लोगों के घर में काम करके अपना पेट पालती है। रेनु बताती हैं कि उसके पति ने उसके ही सामने एक दूसरी औरत से शादी कर ली और कुछ नहीं कर पाई। बस देखती रही। पिछले 10 सालों से वो अकेले अपना घर चला रही है। 

सुबोध 13 साल का एक दिव्यांग बच्चा कहता है कि मैंने तो अपनी मां को देखा ही नहीं, जन्म के दूसरे दिन ही उसकी मां का देहांत हो गया था। सुबोध की नानी ने ही उसे बड़ा किया है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि उसके पिता और बड़ी दीदी और उसके मामाओं ने भी उसे नकार दिया। सुबोध की नानी घरों में काम करके उसे बड़ा कर रही हूं। ऐसी एक कहानी नहीं है, हर किसी की जुबान पर एक दर्द भरी कहानी है। कोई अपनी किस्मत को कोसता है तो कोई अपने माता-पिता को। कोई तो खुदको एक औरत होने पर गाली देती हैं तो कोई जिंदगी को बेमानी कहती हैं। लेकिन फिर भी जिंदगी से हारती नहीं हैं और अकेले चलती जाती हैं। जीना नहीं छोड़ती हैं। अब आप एकबार सोचकर देखिएगा क्या इनकी परेशानियां सचमें बहुत छोटी हैं। 

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