#RohitSardana: सवाल- Media पर इतनी तोहमतें क्यों, पत्रकारों की जिंदगी इतनी सस्ती !

ये तो साफ हो गया है कि कोरोना जैसी महामारी अमीर,गरीब-पत्रकार- साहुकार,या कोई जात-पात देखकर नहीं आती। आज आप इसका शिकार हुए तो कल कोई और होगा। इसलिए किसी को कोरोना हुआ है तो उसके साथ दुर्व्यवार करना कितना लाजमी है ये आप खुद ही तय कर लीजिए। मैं यहां अपने मीडिया के भाई-बहन, साथियों के बारे में कुछ बात करने आई हूं। मैं बहुत ज्यादा कहने की जुर्रत नहीं करूंगी, क्योंकि जिन रोहित सरदाना सर ने कल शरीर छोड़ा है वो मुझसे काफी सीनियर हैं और मैं केवल एक रिपोर्टर हूं। सर का जिक्र इसलिए शुरू कर रही हूं क्योंकि कल से ट्वीटर पर कई तरह की बातें चल रही हैं, मुझे अपने ही ईर्द गिर्द घूम रहे लोग कह रहे हैं कि मीडियो तो बकवास है कुछ भी दिखाती है।

जबसे ये कोरोना काल शुरू हुआ है तब से आज ये लेख लिखने तक ऐसा लग रहा है जैसे पत्रकार और मीडिया समाज की किसी श्रेणी में ही नहीं आते हैं। इनकी जिंदगी कौड़ी के भाव बिक सकती है। इन्हें जिसका जब जो मन आए कह सकता है। जबकि मीडिया के बगैर एक पल किसी का कोई गुजारा नहीं होता। Google,twitter, wikipedia,instagram,gmail,yahoo,facebook, news sites, tv channel,social platforms,online media,you tube, कुछ भी हो। किसी ना किसी रूप में मीडिया ही आप तक हर कुछ पहुंचा रहा है। इसके बावजूद...


पिछले एक महीने में हमारे 30 से अधिक पत्रकार दोस्तों के ऊपर कोरोना ने नंगा नाच खेला है। लखनऊ, दिल्ली,नोएडा,मुंबई, महाराष्ट्र, भोपाल समेत तमाम बड़े शहरों में अपने ड्यूटी निभाते हुए पत्रकारों दोस्तों ने अपनी जान गंवाई है। जिस मीडिया ने हमेशा हर छोटी-बड़ी खबरें,सच,असलियत, जानकरी हर कुछ आप तक बखूबी और समय पर पहुंचाया है। जब आप अपने घरों में त्योहार मनाते हैं तब हम ऑफिस में काम कर रहे होते हैं, ताकि आप तक देश-विदेश की छोटी से बड़ी एक भी खबर या जानकारी मिस ना हो जाए। आज भी कोरोना काल में हम किसी ना किसी माध्यम से आप सभी को मदद करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। कोई फील्ड में जाकर काम कर रहा है तो कोई आर्टिकल या खबरें लिख रहा है। कोई सोशल मीडिया पर जानकारी देकर कहां सिलेंडर हैं,कहां अस्पताल में बेड मिलेगा इसके कॉन्टैक्ट निकाल रहा है तो कोई अप्रत्यक्ष रूप से अपने मीडिया संपर्कों से लोगों की मदद करने में जुटा हुआ है।

इसके बावजूद ये कहा जा रहा है कि मीडिया गलत खबरें दिखाती है। ये तो सब बिकी हुई हैं। इनको देखना बंद कर दो। ये नेगेटिव है। अगर हमारे घराने से किसी की भी मौत हो जाती है तब भी किसी एक के आंखों से आंसू की एक बूंद नहीं गिरती है। मैं एक सवाल तमाम लोगों से करना चाहती हूं कि आखिर क्यों हर सूरत में मीडिया को जिम्मेदार ठहराया जाता है, क्यों हर बात के लिए बस मीडिया को ही दोष दिया जाता है। हर वक्त मीडिया को ही क्यों गाली सुनने को मिलती है, अच्छा हो या बुरा। जबकि अपनी जान हथेली में लेकर पत्रकारिता के उसी जज्बे को बरकरार रखते हुए हम सेवा भाव से काम किए जाते हैं। क्या इसका रिवॉर्ड यही है?

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