#CoronaSecondWave : क्या ये विनाश है या एक नई सृष्टि का आगाज?

ऐसा लगता है जैसे जिंदगी का कोई मोल ही नहीं रहा। कीड़े मकौड़ों की तरह लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं, लोग अपने अपनों को आंखों के सामने मरते देख रहे हैं। जो ऑक्सीजन कभी हवा से हमें मुफ्त में मिलता थी, उसी ऑक्सीजन को पाने के लिए हजारों, लाखों रूपए देने पड़ रहे हैं, उसके बाद भी शायद ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है। कभी सोचा नहीं था कि जिंदगी का ऐसा दौड़ भी आएगा जब लोग सांस लेने के लिए भी कीमत चुकाएंगे। 

कल रात जब किसी अपने को चंद सासों के लिए लड़ते जुझते देखा,तब एहसास हुआ कि हम जिंदगी के एक ऐसे मोड़ पर हैं जहां सासों का भरोसा ही नहीं है। अभी इस पल आप हैं और दूसरे ही पल आप साथ नहीं हैं। इससे भयानक क्या हो सकता है। जब ऑक्सीजन के लिए तड़पना पड़ रहा है, उसके बाद भी उम्मीद नहीं है कि हम बच पाएंगे। करोड़ों की आबादी ऐसे ही खत्म हो रही है। इसे क्या कहेंगे, मुझे नहीं पता ये प्रलय है, विनाश है या एक नई सृष्टि का आगाज। क्या हर चीज की अति हो गई थी,शायद इसलिए ये होना जरूरी था। 

या फिर यूं कहें ऐसा नहीं होता तो हमें जीवन की एहमियत और इंसानियत की कीमत नहीं समझ आती। हमें अपने अंदर झांकने का मौका नहीं मिलता, हमें ये पता ही नहीं होता कि जिंदगी में हर पल कितना कीमती होता है, रिश्तों को प्यार से सहज कर रखा जाता है। अपनों के लिए इतनी तड़प नहीं होती। आज जो कड़वाहट,भ्रष्टाचार,दुख, अशांति और नफरत लोगों में बढ़ गई थी, लगता है ये उसीका अंत है। तभी तो अब लोग जात-पात, धर्म, अपना-पराया और स्वार्थ भूलकर एक दूसरे की मदद के लिए जान लगा रहे हैं। हर कोई हर किसी के लिए तड़प रहा है। देश के हर कोने से इंसान एक दूसरे को बचाने में लगा हुआ है। इंसानियत जिंदा हो गई है। लेकिन क्या इन सब एहसासों को जिंदा करने के लिए ये कीमत चुकाना जरूरी था। अपनों को खोना जरूरी था ??

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