क्या जिंदगी को पीछे छोड़ आए हम ...

हर कोई जिंदगी और अपने काम से रोज एक जंग लड़ता है..जिस काम को अपनी जिंदगी मानकर करियर की तलाश में युवा शहर आते हैं, खासकर मीडिया में काम करने के लिए..कुछ सालों में वो जिंदगी बेइमानी लगने लगती है उन लोगों को..काम बेकार सा और मीडिया में पत्रकार बनने का सपना अधूरा सा..ऐसा लगता है जैसे इतने साल बस इस शहर में किसी अधूरी सी ख्वाहिश में खुद को बर्बाद किया है..कल ऐसे ही एक दोस्त बहुत ही उदासी से फोन किया और रोने लगा..जब मैंने उससे पूछा हुआ क्या तो उसने अपने पिछले कुछ सालों में मीडिया में काम करने का अनुभव साझा किया..उसकी बातों से साफ हुआ कि कैसे हम अपने सपने करियर को बनाने के चक्कर में खुद को कितना पीछे छोड़ आते हैं...

सिर्फ वो ही नहीं, ऐसे कितने युवा हैं जो रोज अफिस में मुझसे टकराते हैं, रोजाना कोई ना कोई दोस्त जो बाहर से आकर शहर में मीडिया में काम करते हैं वे यही कहते हैं क्या कर रहे हैं हम..कहां आ गए हैं हम..क्या हो गया हमारे साथ..हमने ऐसा नहीं चाहा था..जो मिला वही किया...दिल से काम किया..घंटों अपना वक्त आफिस को दिया लेकिन आज जब कुछ सालों बाद मुड़कर देख रहे हैं तो कुछ अच्छा सा नहीं लग रहा ...जिंदगी से दूर हो गए हम..अपने रिश्ते, प्यार, घर वाले, दोस्ती, अपनापन, ख्हाहिश कुछ नहीं बची..तो क्या इसी उम्मीद से आए थे इस शहर में ...नहीं ना..
मुझे समझ नहीं आया उस दोस्त को जवाव क्या दूं, बस उसे समझाया और कहा कि जिंदगी को खुद ही ढूंढ लाना है..एक ब्रेक ले ले और सोच ले जिंदगी से दोबारा मिल ले..नौकरी क्या है फिर मिलेगी..लेकिन अगर खुशी चली गई तो सब कुछ खत्म है..और ये भी कहा कि जो किया वो बेकार नहीं था काम का था..जीवन के सफर में हर चीज हर अनुभव काम आता है..मैंने क्या सही कहा..आप ही बताएं..

टिप्पणियाँ

लोकप्रिय पोस्ट