पत्रकारिता का वो अनुभव...
कोई भी पत्रकार चाहता है कि उसके करियर में वो एक ऐसी कवरेज करे जो यादगार हो, माना एक टर्निंग प्वाइंट हो। पिछले सात साल के करियर में ऐसा मौका नहीं मिला था। इनडायरेक्टली कई बार कवरेज दी है। डेस्क पर बैठकर कई बार बड़ी स्टोरीज की है। बाहर जाकर लाइव भी किया है जबसे चैनल में रिपोर्टिंग में हूं। लेकिन जब अपने किसी ऐसे आदर्श की लाइव रिपोर्टिंग करने का मौका मिले तो बस। जिसकी मुझे हमेशा से ही एक तलब थी। क्योंकि बाहर का जो अनुभव होता है वो फील देता है आप पत्रकार हैं और आप अलग हैं। पत्रकारिता का रस उसमें ही है। अटल बिहारी वाजपेयी जी का निधन।
जब अब्दुल कलाम का निधन हुआ था उसे वक्त भी मैंने डेस्क से रिसर्च करके खूब स्टोरीज प्रिंट में पेज में चलाई थी, मैं पंजाब केसरी में थी। लेकिन उस वक्त भी मेरे अंदर एक चुभन थी क्योंकि वो भी मेरे फेवरेट थे। लेकिन मैं बाहर नहीं जा पाई थी, कोस रही थी खुद को। क्या था जो रोक रहा था। इस बार ऐसा नहीं हुआ। पता नहीं कैसे इस महान इंसान, राजनीतिज्ञ और मेरे सबसे फेवरेट हमेशा सोचती थी इनकी कवरेज करूंगी। लेकिन ये नहीं सोचा था कि इनके निधन की खबर करनी होगी। मैंने लगातार एम्स में उनकी हालत और जिस दिन उनका निधन हुआ उसकी रिपोर्टिंग की। पूरे दिन एम्स के अंदर से। जीवन का और पत्रकारिता का वो अनुभव याद रहेगा।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें