माथुर की ये किताब खोलेगी गांधी परिवार के कई राज
दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी चिकित्सक के पी माथूर की हाल ही में प्रकाशित हुई किताब द अनसीन इंदिरा गांधी ने गांधी परिवार की राजनीति के कई पन्ने खोल दिए हैं। कई पुरानी बातें और गांधी परिवार के रिश्तों का इतिहास फिर से तरोताजा हो गया।
गांधी परिवार की दो बहूएं, सोनिया और मेनका गांधी। एक गांधी परिवार की विरासत को आगे लेकर आईं और दूसरी परिवार से दूर सालों से बनवास काट रही है। संजय गांधी की मौत के बाद ही मेनका ने गांधी परिवार से सभी नाते तोड़ दिए थे, लेकिन कहीं ना कहीं गांधी नेहरू परिवार की छोटी बहु के तौर पर उस विरासत से दूर हो जाने की टिस मेनका के दिल में आज भी है।
गांधी परिवार की बहु के रूप में उनकी पुरानी महत्वाकांक्षाएं फिर से जागती हुई दिखाई दे रही हैं। अब वह महसूस करने लगी हैं कि भाजपा में अपना कद बढ़ाने की बजाय कांग्रेस की विरासत पर उनका हक़ है। बात आज सिर्फ उनकी नहीं है, बल्कि भाजपा से सामंजस्य न बैठा पा रहे वरुण के राजनीतिक करियर का भी है।
पिछले दिनों जिस तरह से मेनका गांधी ने अपनी जेठानी सोनिया गांधी की तारीफ की उससे यह लगता है कि पुराने गिले शिकवे भूलकर अब वह अपने परिवार और अपनी विरासत की तरफ लौटना चाहती हैं। आज कांग्रेस की खस्ता हालत को देखते हुए कहीं ना कहीं ये लगता है पार्टी को और गांधी परिवार को एक संजीवनी की जरूरत है और वरुण मेनका पार्टी में जान डाल सकते हैं, क्योंकि वरुण तेजी से युवाओं में लोकप्रिय हो रहे हैं। यही नहीं उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी वरुण की स्वीकार्यता तेजी से बढ़ रही है। वह किसान नेता के रूप में उभर रहे हैं।
दरअसल, इस बात की सुगबुगाहट इन दिनों इसलिए भी तेज हो गई है, क्योंकि मेनका-सोनिया के मुलाकात के कुछ समय बाद ही माथूर की किताब आई, जिसमें यह खुलासा किया गया है कि इंदिरा गांधी चाहती थीं कि संजय की मौत के बाद मेनका उन्हें राजनीति में मदद करें।
सफदरजंग अस्पताल के पूर्व चिकित्सक माथुर ने करीब 20 साल तक दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चिकित्सक के तौर पर काम किया और वह हर सुबह इंदिरा से मिलते थे। यह सिलसिला वर्ष 1984 में इंदिरा के निधन होने तक चला। इंदिरा के साथ अपने अनुभवों को ही डॉ. माथुर ने किताब की शक्ल दी है। किताब में दावा किया गया है कि संजय गांधी के निधन के कुछ ही साल बाद मेनका ने हालात से सामंजस्य स्थापित करने की बजाय प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया।
सफदरजंग अस्पताल के पूर्व चिकित्सक माथुर ने करीब 20 साल तक दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के चिकित्सक के तौर पर काम किया और वह हर सुबह इंदिरा से मिलते थे। यह सिलसिला वर्ष 1984 में इंदिरा के निधन होने तक चला। इंदिरा के साथ अपने अनुभवों को ही डॉ. माथुर ने किताब की शक्ल दी है। किताब में दावा किया गया है कि संजय गांधी के निधन के कुछ ही साल बाद मेनका ने हालात से सामंजस्य स्थापित करने की बजाय प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया।
उन्होंने इस किताब में उस पूरे दौर की कहानी बयां की है। यह किताब इंदिरा और मेनका के रिश्ते की सच्चाई बयां करती है। मेनका भारतीय मूल की थीं और गांधी परिवार में आने के बाद वह भारत की राजनीति को समझने भी लगी थीं, ऐसे में इंदिरा चाहती थीं की उनकी छोटी बहू राजनीति में उनकी सहायिका बनें। हालांकि ऐसा हो नहीं पाया क्योंकि मेनका ऐसे लोगों के साथ थीं जो राजीव के विरोधी थे।
संजय की मौत के बाद ही मेनका ने आनन-फानन में प्रधानमंत्री आवास छोड़ दिया था और संजय गांधी की 'पार्टी राष्ट्रीय संजय' मंचको आगे ले जाने का काम करने लगी थीं। लेकिन गांधी परिवार से अलगाव के बाद उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं बढ़ती गईं और बाद में वह विपक्षी पार्टी भाजपा में शामिल हो गईं। यह कहना गलत नहीं होगा कि वह एक कुशल नेत्री हैं, लेकिन इसके बावजूद उन्हें न अपने घर में और न ही भाजपा में वह मुकाम नहीं मिला जिसकी वह हक़दार थीं।
कोणार्क प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब में कहा गया है कि इंदिरा का झुकाव मेनका की तरफ था लेकिन आपसी तालमेल नहीं बना पाया और आखिर दोनों का अलगाव हो गया। गांधी परिवार में रहते सोनिया आम तौर पर घरेलू मामलों का जिम्मा संंभालती थीं, जबकि राजनीतिक मामलों में प्रधानमंत्री मेनका के विचारों पर गौर करती थीं, क्योंकि मेनका की राजनीतिक समझ अच्छी थी।
किताब में यह भी दावा किया गया है कि दरअसल मेनका की नजदीकियां उन लोगों से ज्यादा थीं जो राजीव गांधी के विरोधी थे और संजय गांधी के समर्थक थे। संजय गांधी के समर्थकों और मेनका गांधी ने मिलकर संजय के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए ' राष्ट्रीय संजय मंच' नामक संगठन बनाई। माथुर कहते हैं कि हालांकि मुझे यह कभी पता नहीं चल पाया कि वे क्या कर रहे हैं।
उनके अनुसार इंदिरा गांधी तब विदेश दौरे पर थीं और वहां से उन्होंने मेनका गांधी को संदेश भेजा था कि वह इस सम्मेलन को संबोधित न करें, लेकिन मेनका गांधी ने अपनी सास और पीएम इंदिरा गांधी की बातों को अनसुना करते हुए सम्मेलन को संबोधित किया।
सोनिया ने संभाली जिम्मेदारी
किताब के मुताबिक राजीव गांधी और सोनिया गांधी के विवाह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के बीच तालमेल स्थापित होने में ज्यादा समय नहीं लगा। सोनिया गांधी अपनी सास इंदिरा गांधी को बहुत सम्मान देती थीं और इंदिरा गांधी भी सोनिया गांधी को बहुत प्यार करती थीं। सोनिया गांधी ने जल्द ही सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
किताब के मुताबिक राजीव गांधी और सोनिया गांधी के विवाह के बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी के बीच तालमेल स्थापित होने में ज्यादा समय नहीं लगा। सोनिया गांधी अपनी सास इंदिरा गांधी को बहुत सम्मान देती थीं और इंदिरा गांधी भी सोनिया गांधी को बहुत प्यार करती थीं। सोनिया गांधी ने जल्द ही सारे घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली।
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