एकला चलो' की नीति पर चलकर बंगाल में दीदी बनीं 'दादा'
पश्चिम बंगाल में 34 साल शासन करने वाले वामफ्रंट को धूल चटाकर साल 2011 में सत्ता पर काबिज होने वाली मां माटीर मानुष की सरकार साल 2016 में दोबारा वापस आई, लेकिन इस बार टीएमसी ने बहुमत के साथ वापसी की है। टीएमसी की ये जीत आम जीत नहीं है, पार्टी ने एक ऐतिहासिक जीत की ओर कदम बढ़ाया है। कांग्रेस-माकपा के गठबंधन को पीछे छोड़कर टीएमसी ने अपना दबदबा बरकरार रखा।
ममता की पहचान सादगी और जमीन से जुड़ी हुई नेता के तौर पर है। ऐसे में उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि बंगाल की जनता मां माटीर मानुष के रंग में कितना रंग चुकी है। पिछले दिनों कई विवादों में घिरी इस सरकार ने साबित कर दिया कि विरोधियों के सारे दांव खोखले निकले।
एकला चलो की नीति पर चलकर ममता ने इतनी बड़ी जीत दर्ज की है। 294 सीटों में से 213 सीट लेकर टीएमसी ने इतिहास रचा है। वहीं, लेफ्ट और कांग्रेस ने मिलकर भी 100 सीटें नहीं पूरी की। कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन बहुत नुकसानदायक रहा।
एक्सपर्ट बता रहे हैं कि बंगाल के नतीजे केवल राज्य के लिए अहम नहीं है, बल्कि केंद्र की राजनीति पर इसका बड़ा असर होगा। बंगाल में कांग्रेस और लेफ्ट का उत्थान बहुत जरूरी था, लेकिन इस साल के नतीजों ने दोनों के लिए निराशा के बादल घेर दिए हैं। अब लगता नहीं आने वाले कुछ सालों तक बंगाल में लेफ्ट उबरकर आ पाएगी।
शारदा घोटाले और नारद स्टिंग रहा बेअसर
तृणमूल कांग्रेस को शारदा घोटाले और अपने कुछ नेताओं के कथित नारद स्टिंग में फंसने जैसे मुद्दे से रूबरू होना पड़ा। टीएमसी को पिछले दिनों कितने विवादों में घेरा गया, लेकिन आज के नतीजे साफ कहते हैं कि उनपर इसका कोई असर नहीं हुआ। वोटरों को लुभाने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण, बिजली की अच्छी उपलब्धता, छात्राओं को साइकिल और दो रुपये में एक किलो चावल जैसे कार्यक्रम को पेश किया था।
एकला चलो की नीति पर चलकर जीतीं ममता
पीएम नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्रियों और राज्य स्तर के भाजपा नेताओं ने ममता को उनके राज्य में घेरने का प्रयास किया लेकिन अंतत: उन्हें रोकने के सारे प्रयास विफल साबित होते लग रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक राज्य में वाम मोर्चे की सरकार को उखाड़ फेंकने को उनकी राजनीतिक यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं।
हालांकि सत्ता में आने के बाद रूग्ण उद्योग और ठहरी आर्थिक वृद्धि से त्रस्त पश्चिम बंगाल को निकालना उनकी सबसे बड़ी चुनौती रही है जिससे पार पाने में वे लगातार प्रयासरत दिखी भी। अपने समर्थकों के बीच ‘दीदी’ के नाम से मशहूर ममता का जन्म पांच जनवरी, 1955 को कोलकाता के प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी के घर हुआ था। निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली ममता अपनी सादगी के लिए जानी जाती हैं। सफेद सूती साड़ी और हवाई चप्पल उनकी पहचान बन चुकी है।
तृणमूल कांग्रेस को शारदा घोटाले और अपने कुछ नेताओं के कथित नारद स्टिंग में फंसने जैसे मुद्दे से रूबरू होना पड़ा। टीएमसी को पिछले दिनों कितने विवादों में घेरा गया, लेकिन आज के नतीजे साफ कहते हैं कि उनपर इसका कोई असर नहीं हुआ। वोटरों को लुभाने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण, बिजली की अच्छी उपलब्धता, छात्राओं को साइकिल और दो रुपये में एक किलो चावल जैसे कार्यक्रम को पेश किया था।
एकला चलो की नीति पर चलकर जीतीं ममता
पीएम नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्रियों और राज्य स्तर के भाजपा नेताओं ने ममता को उनके राज्य में घेरने का प्रयास किया लेकिन अंतत: उन्हें रोकने के सारे प्रयास विफल साबित होते लग रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक राज्य में वाम मोर्चे की सरकार को उखाड़ फेंकने को उनकी राजनीतिक यात्रा की सबसे बड़ी उपलब्धि मानते हैं।
हालांकि सत्ता में आने के बाद रूग्ण उद्योग और ठहरी आर्थिक वृद्धि से त्रस्त पश्चिम बंगाल को निकालना उनकी सबसे बड़ी चुनौती रही है जिससे पार पाने में वे लगातार प्रयासरत दिखी भी। अपने समर्थकों के बीच ‘दीदी’ के नाम से मशहूर ममता का जन्म पांच जनवरी, 1955 को कोलकाता के प्रोमिलेश्वर बनर्जी और गायत्री देवी के घर हुआ था। निम्न मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली ममता अपनी सादगी के लिए जानी जाती हैं। सफेद सूती साड़ी और हवाई चप्पल उनकी पहचान बन चुकी है।
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