कोलकाता में एक और पुल हादसा, क्या अब कहीं जाकर बदलेगी तस्वीर...?


कोलकाता में एक और पुल हादसा। पांच सालों में अगर देखें तो ये तीसरा बड़ा पुुल हादसा है। अब तो हर साल डर लगता है जैसे पता नहीं कब कौन सा पुल गिर जाए। कुछ पता नहीं। जिंदगी एकदम आम सी हो गई है वहां। माझेरहाट पुल हादसा। इससे पहले विवेकानंद और उससे पहले उल्टाडांगा। मैंने ये लेख 2016 में लिखा था जब विवेकानंद वाला हादसा हुआ था और बंगाल में चुनाव थे। आज इसे एडिट कर रही हूं जब माझेरहाट वाला हादसा हुआ। कुछ भी नहीं लिखना चाहती। वही आलम वही बयान, वही झूठ वही सरकार। वही लोगों का दर्द और डर। 

Flash back 

कोलकाता पुल हादसे ने बंगाल की राजनीति की एक गंदी तस्वीर उजागर कर डदी। सत्ताधारी पार्टी टीएमसी, कांग्रेस, बीजेपी हर कोई इसपर राजनीति करने में जुट गई है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या ये हादसा बंगाल में 4 अप्रैल से शुरू हो रहे विधानसभा चुनाव की तस्वीर में कुछ फेरबदल कर पाएगा। सवाल है कि क्या ये हादसा बंगाल में दीदी की तस्वीर धूमिल कर पाएगा ?

जिस तरह से विपक्ष बंगाल सरकार पर आरोप मढ़ रहा है, उन्हें चुनाव में भुनाने के लिए एक मुद्दा मिल गया है। कांग्रेस, बीजेपी दोनों राजनीतिक दलें टीएमसी सरकार को ही इस हादसे के लिए जिम्मेदार ठहरा रही है। सच तो ये भी है कि बंगाल सरकार को पहले से ही इस पुल के गड़बडी की जानकारी थी।

टीएमसी सांसद सुदीप बंधोपाध्याय ने साफ कहा कि उन्होंने दीदी को पहले ही चेताया था कि पुल के नक्शे में गड़बड़ी है, लेकिन सरकार ने आंखें इसलिए बंद रखी क्योंकि राज्य में चुनाव होने वाले हैं और विकास की तस्वीर के रूप में ये पुल सरकार के काम काज का एक अच्छा नमूना हो सकता था। शायद इसलिए पिछले दिनों ममता सरकार ने पुल का काम चुनाव से पहले खत्म करने के निर्देश भी दिए थे।
सीपीएम सांसद मोहम्मद सलीम ने हादसे पर सवाल उठाते हुए कहा है कि आखिर क्यों ब्रिज का काम दिन में किया जा रहा था? सबसे बड़ी बात ये है कि पुल जहां बन रहा था, वो कोलकाता का घनी आबादी वाला इलाका है। पोस्ता बाजार और बड़ा बाजार कोलकाता के दो सबसे बड़े बाजार यहीं स्थित हैं। लोगों के घर तीन-चार फीट की दूरी में है। ऐसे में वे पहले से ही इस पुल के निर्माण का विरोध कर रहे हैं। गणेश टॉकीज के विधायक और सांसद टीएमसी से हैं, लेकिन इस इलाके में बीजेपी की तगड़ी पकड़ है।
बीजेपी ने यहां से लोकसभा चुनाव जीता था। बीजेपी के यहां तीन काउंसिलर हैं। ऐसे में टीएमसी के लिए इस बार यहां से जीत पाना मुश्किल दिखाई दे रहा है। यहां की आधी आबादी मारवाड़ी या व्यापारी वर्ग है और जो लोग फुटपाथ पर सोते हैं या रिक्शाचालक हैं, वे लोग बिहारी हैं। ऐसे में बीजेपी को इस हादसे का बड़ा फायदा हो सकता है।
पश्चिम बंगाल भाजपा के राष्ट्रीय सचिव राहुल सिन्हा ने बड़े जोर गले से कहा कि अब ममता सरकार को बंगाल से हटाने में वक्त नहीं लगेगा। उनकी राजनीति और भ्रष्टाचार की गंदी तस्वीर सबके सामने आ गई है। उन्होंने जान बुझकर चुनाव को देखते हुए लोगों की जिंदगी के साथ खेला और पुल का काम वापस शुरू करवाया। इतने दिनों से वे चुप बैठी थीं, फिर एकदम से चुनाव की तारीखों का ऐलान होते हैं उन्होंने रातोंरात जल्दबाजी में काम शुरू करवा दिया। यही वजह है कि आज इतने लोगों की जान गई है।  

फ्लाइओवर का इतिहास

ये फ्लाइओवर बनने का काम आठ साल पहले शुरू हुआ था। हैदराबाद की कंपनी को इसका ठेका दिया गया था। करीब सवा दो किलोमीटर लंबे इस फ्लाईओवर का निर्माण में 164 करोड़ रुपए खर्च होने थे, लेकिन अब तक इसका 900 मीटर लंबा हिस्सा ही तैयार हो पाया था। ये दो हिस्सों में बन रहा था।  विशेषज्ञों का कहना है कि इसकी डिजाइन में खामी और इसे पूरा करने का राजनीतिक दबाव ही इस हादसे की वजह बन गया है। जो हिस्सा ढहा है उसकी ढलाई ही हादसे की पहली शाम को की गई थी। 

साल 2007 की 24 फरवरी को ये काम शुरू हुआ था। 18 महीने में बनकर तैयार होने वाले इस पुल को बनने में 32 महीने लग गए। पुल ने कई बार अपनी डेडलाइन क्रास की। इसपर अब तक करीब 250 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं और कंपनी कहती है कि हमें फंडिंग की कमी हो रही थी, इसलिए माल नहीं खरीद पा रहे थे। ममता सरकार ने पिछले साल नंवबर में कहा था कि फरवरी में ही पुल का काम पूरा हो जाएगा, लेकिन पुल ने अपनी 9वीं डेडलाइन खत्म कर दी और काम आधा रह गया था।
स्थानीय लोग साफ आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने सिर्फ चुनाव के चक्कर में ही इसे जल्दी में खत्म करने की कोशिश की और ये हाल हुआ है। सरकार को दिखाना था कि हम विकास का काम रहे हैं, लेकिन क्या कोलकाता को कोई फायदा मिलेगा।
सीपीएम सरकार ने उल्टाडांगा फ्लाइओवर के साथ भी कुछ ऐसा ही किया था। साल 2013 में वो पुल भी बुरी तरह से ढह गया था। जिसमें कई लोगों की जानें गई थी। चुनाव का लाभ लेने के लिए इसे जल्दबाजी में बनाने का काम हो रहा था।

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