सीरत बदले तो बदले समाज की सूरत...


नारी यानी महिला जो बचपन में बेटी, बाद में बालिका-छात्रा फिर टीन एज में आने के बाद लड़की और फिर शादी के बाद नारी का रूप धारण कर अपनी उम्र के हर पड़ाव को गौरवान्वित करती है ऐसी है यह महिला। महिला तो त्याग और समर्पण की मूरत होती है। वो हर रिश्ते को बखूबी निभाती है। लेकिन कभी हमने ये सोचा है कि इन सब के बीच उसकी अपनी पहचान कहीं खो सी जाती है। हम भूल जाते हैं कि वो पहले एक नारी है। इसी बात का अहसास दिलाने के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। लेकिन इस दिन को सिर्फ एक दिन ही नहीं बल्कि रोज मनाना चाहिए। ऐसे दिन का पालन करने से पहले समाज को अपनी सोच में बदलाव लाना काफी जरूरी है।
वैसे तो महिलाओं को उनके अधिकार से रू-ब-रू कराने और लोगों में उनके प्रति सम्मान पैदा करने के लिए किसी खास दिन की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी महिलाओं को सम्मान देने और समाज में उनके रोल के महत्व को समझाने के लिए महिला दिवस की शुरुआत की गई। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है। पूरी दुनिया में यह दिन महत्व के साथ मनाया जाता है।
कब और कैसे शुरू हुआ ये दिन
सौ साल पुरानी इस परंपरा की शुरुआत बीसवीं सदी में ही हो गई थी। साल 1908 में न्यूयॉर्क की एक कपड़ा मिल में काम करने वाली करीब 15 हजार महिलाओं ने काम के घंटे कम करने, बेहतर तनख्वाह और वोट का अधिकार देने के लिए प्रदर्शन किया था। इसी क्रम में 1909 में अमेरिका की ही सोशलिस्ट पार्टी ने पहली बार नेशनल वुमंस-डे मनाया था। वर्ष 1910 में डेनमार्क के कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं की एक कान्फ्रेंस हुई जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाने का फैसला किया गया और 1911 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।
इसे सशक्तिकरण का रूप देने हेतु ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में लाखों महिलाओं ने रैलियों में हिस्सा लिया। 1917 में रूस की महिलाओं ने महिला दिवस पर रोटी, कपड़ा के लिए हड़ताल पर जाने का निर्णय लिया। यह एक ऐतिहासिक निर्णय था। यह हड़ताल भी ऐतिहासिक थी। जार ने सत्ता छोड़ी और अन्तरिम सरकार ने महिलाओं को वोट देने के अधिकार दिए। उस समय रूस में जुलियन कैलेंडर चलता था और बाकी दुनिया में ग्रेगेरियन कैलेंडर। इन दोनों की तारीखों में कुछ अन्तर है।
जुलियन कैलेंडर के मुताबिक 1917 की फरवरी का आखिरी रविवार 23 फरवरी के दिन था, जबकि ग्रेगेरियन कैलैंडर के अनुसार उस दिन 8 मार्च था। इस समय पूरी दुनिया में (यहां तक रूस में भी) ग्रेगेरियन कैलैंडर चलता है। इसी लिये 8 मार्च का दिन महिला दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार यह दिन 8 मार्च का था और इस कारण इस दिन को महिला दिवस के रुप में घोषित किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 1975 को महिला वर्ष घोषित किया था और इस दिवस को आधिकारिक स्वीकृति प्रदान की थी।
इस दिन का महत्व
परिवार की सभी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में अपना जीवन समर्पित करने वाली महिलाओं को सही मायनों में आज भी अपने अधिकारों से वंचित रखा गया है। समाज अपनी सम्पूर्णता को तब तक नहीं पा सकता जब तक कि दुनिया की आधी आबादी को उसके अधिकारों,आजादी और सम्मान से वंचित रखा जाता है। जीवन के सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भूमिका को पहचानते हुए संयुक्त राष्ट्र की ओर से पहली बार वर्ष 2008 में 15 अक्टूबर को 'अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस' की भी शुरुआत की गई।
अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस मनाने को लेकर हालांकि संयुक्त राष्ट्र महासभा में 18 दिसम्बर, 2007 को ही एक प्रस्ताव पारित कर दिया गया था। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि ग्रामीण इलाकों में गरीबी दूर करने, खाद्य सुरक्षा में सुधार करने, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि का विकास करने में ग्रामीण पृष्ठभूमि की महिलाएं काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। विश्व के विकसित और विकासशील देशों में आज महिलाएं मुख्य भूमिका अदा कर रही हैं। शहरी की कामकाजी महिलाओं ने ऑफिस के काम के साथ-साथ घर की जिम्मेदारियों को भी अपने कंधो पर उठा रखा है।
वही ग्रामीण इलाके की महिलाएं जहां एक तरफ जहां फसलों के उत्पादन, देख-रेख,भोजन, पानी और ईंधन जुटाने में सहायक साबित हो रही हैं वहीं दूसरी ओर वे बच्चों, बुजुगरें और बीमार लोगों की देखभाल की जिम्मेदारी भी निभा रही हैं। भारत में महिलाओं की स्थिति पर अगर चर्चा करें तो हम पाएंगे कि यहां महिला हमेशा से ही परिवार की धुरी रही है। अधिकार और स्वतंत्रता से उसे लंबे समय तक वंचित किया गया, लेकिन सभ्यता के विकास के साथ महिलाओं के प्रति सोच में भी बदलाव हुआ। आजादी के बाद भी भारत में महिलाओं की भूमिका बहुत हद तक सामाजिक ही रही और उसकी राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र से दूरी बनी रही।
नई प्रौद्योगिकी और शिक्षा के प्रसार ने महिलाओं के प्रति समाज की सोच में बदलाव लाना शुरू किया और धीरे-धीरे हर क्षेत्र में महिलाओं के लिए द्वार खुलने लगे। उनकी सामाजिक स्थिति के साथ-साथ आर्थिक स्थिति भी मजबूत हुई। भारत सरकार की ओर से ग्रामीण महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए वर्तमान में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उनमें प्रमुख रूप से स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार मिशन, राजीव गांधी किशोरी सशक्तिकरण योजना, जननी सुरक्षा योजना, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना शामिल हैं। इसके अलावा महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सरकार ने वर्ष 1990 में एक बड़ा कदम उठाया। इस वर्ष सरकार ने राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की जो महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और उन्हें अपनी भूमिका के प्रति जागरूक करता है।
विभिन्न सरकारी - गैर सरकारी प्रयासों के साथ-साथ महिलाएं स्वयं भी आज काफी जागरुक हो रही हैं। महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के जरिए एकजुट कार्य करते हुए सफलता की ओर बढ़ रही हैं। स्वयं सेवी संगठनों को सरकार विभिन्न प्रायोजित कार्यक्रमों जैसे नाबार्ड, राष्ट्रीय महिला कोष, यूएनडीपी के जरिए सहायता भी उपलब्ध करा रही है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि आज महिलाएं सीढ़ी-दर सीढ़ी प्रगति की राह पर अग्रसर हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि महिलाओं के खिलाफ अपराध समाप्त हो गए हैं। जितना वो तेजी से आगे बढ़ रही हैं उनके खिलाफ अपराध उतने ही बढ़ रहे हैं। कन्या भ्रूणहत्या, महिलाओं के प्रति यौन हिंसा और दहेज उत्पीड़न जैसी बुराइयां समाज में आज भी कायम हैं। महिलाओं का सही मायने में सशक्त करने के लिए अभी और सार्थक प्रयास करने की आवश्यकता है। ऐसे में महिला दिवस एक प्रतीक के रुप में उभरकर हमारे सामने आता है जो उनके अधिकारों के लिए कार्य करने को प्रेरित करता है।

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