भ्रष्टाचार के पेंच खोले तो पड़ेगा जान से हाथ धोना
नई दिल्ली। देश में बढ़ते भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार कुछ खासा कदम तो नहीं उठा रही है बल्कि जो लोग भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए अपने प्रयास कर रहे हैं, उन्हें सजा देकर उन कोशिशों को रोकने की कवायद कर रही है। उन्हें सुरक्षा देने में व्यर्थ हो रही है। ऐसा कई बार हुआ है। स्थानीय सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियों को उजागर करने वाले नंदी सिंह को दो सितंबर को मौत के घाट उतार दिया गया था। नंदी असम के एक दुरस्त गांव में रहता था। ऐसे कई और भी मामले हैं जहां सरकार ने उन लोगों को सजा दी है जिन्होंने भ्रष्टाचार को प्रकाश में लाया है।
सूत्रों ने बताया कि असम के धेमाजी गांव में इस हत्या को ऐसे समय अंजाम दिया गया,जब राज्यसभा में बजट व मानसून दोनों सत्रों की कारवाई चल रही थी, लेकिन संसद के दोनों सत्रों में व्यवधान के चलते ऐसा नहीं हुआ।
नंदी सिंह ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली की एक दुकान में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्हें उनके घर पर उनकी पत्नी के सामने मौत की नींद सुला दिया गया। यह इस तरह की घटनाओं का केवल एक उदाहरण है। इसी तरह सात जुलाई को पश्चिम बंगाल के 24 परगना में एक स्कूल शिक्षक बारुण बिस्वास की हत्या कर दी गई। बिस्वास ने सामूहिक बलात्कार के मामले के अभियुक्तों के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने साल 2000 में एक प्राथमिकी भी दर्ज कराई। उनके प्रयासों से छह अभियुक्तों को उम्रकैद की सजा मिली लेकिन बाकी भगोड़े साबित हुए।
एक अन्य घटना में तमिलनाडु के तिरूवनंतपुरम में कई राजनेताओं व व्यवसायियों के खिलाफ कई मामले दर्ज कराने वाले के.राजमोहन चंद्रा की जुलाई में हत्या कर दी गई। अपराधों और खामियों को उजागर करने वालों पर इस तरह के हमलों से सामाजिक कार्यकर्ता महसूस करते हैं कि सरकार भ्रष्टाचार को सामने लाने वाले लोगों की सुरक्षा के प्रति गंभीर नहीं है।
नेशनल इलेक्शन वॉच व एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉम्र्स के राष्ट्रीय संयोजक अनिल बेरवाल ने बताया कि लोग उम्मीद करते हैं कि सरकार इस तरह के मामलों में तत्काल प्रभाव से काम करे लेकिन उसकी ओर से उदासीनता ही दिखाई देती है।
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल दिल्ली में काम करते हैं। वह मानते हैं कि वह इसलिए सुरक्षित हैं क्योंकि वह राष्ट्रीय राजधानी में रहते हैं। अग्रवाल ने भ्रष्टाचार को सामने लाने वाले लोगों की हत्या ज्यादातर दूर-दराज के इलाकों में होती। शायद इसके लिए दिल्ली में रहना सुरक्षित है।
इस तरह से भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए लम्बे समय से कानून बनाए जाने की मांग की जा रही है। भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के परियोजना निदेशक सत्येंद्र दुुबे की हत्या के बाद से इस तरह के कानून की मांग ने जोर पकड़ा है। दुबे ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को पत्र लिखकर स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग निर्माण परियोजना में भ्रष्टाचार का खुलासा किया था। पीएमओ ने उनके नाम का खुलासा कर दिया और फिर उनकी हत्या हो गई।
बरसों बाद दिसंबर 2011 में भ्रष्टाचार को उजागर करने वालों की सुरक्षा से सम्बंधित विधेयक लोकसभा में पारित हो गया। अब यह राज्यसभा में स्वीकृति के लिए लंबित है।
very nice
जवाब देंहटाएंsahi bat h........
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