सपनों का घरौंंदा
चली थी एक मंजिल की तलाश में, ना रास्ते का पता था और ना ही सफर का...
साथी भी गुमशुदा था, पर डगमगाई नहीं, खोई नहीं, भूली नहीं मंजिल अपनी
चलती गई..कांटों से फूलों तक पहुंच गई, पर मंजिल अब भी दूर थी
लेकिन खूबसूरत था सफर, जानते हो क्यों....
निकली थी एक सपने की तलाश में, लेकिन ये क्या सपनों का घरौंदा ही बना लिया...
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