...अब दिल्ली में सुनाई देगी न्योमा संघर्ष की गूंज
तीन साल पहले लद्दाख के न्योमा में सेना के जवानों के साथ हुई नाइंसाफी की गूंज अब राजधानी तक सुनाई देने लगी है। 226 फील्ड रेजिमेंट जवानों का परिवार सड़कों पर प्रदर्शन कर सरकार से इंसाफ की मांग कर रहा है।
सैनिकों के परिवार का आरोप है कि तोपखाना के अधिकारियों ने झूठ बोलकर जवानों को फंसा कर सजा दिलाई है। दरअसल, मई 2012 को लद्दाख के न्योमा में तैनात सेना के जवान और तोपखाना इकाई के अधिकारियों के बीच किसी बात को लेकर बहस हो गई थी।
10 से 13 अगस्त तक धरने पर बैठेगा जवानों का परिवार
इसके बाद तीन अधिकारियों ने मिलकर एक जवान को खूब पीटा और जब बाकी जवान उसे बचाने के लिए आए तो उन्हें ये कहकर फंसा दिया कि जवान उनकी पत्नियों पर गंदी नजर डाल रहे थे और उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। दो साल कानूनी कार्रवाई चलने के बाद साल 7 मई 2015 में कोर्ट मार्शल के दौरान 15 जवानों को सजा सुनाई गई।
समरी जनरल कोर्ट मार्शल (एसजीसीएम) ने 175 सैनिकों में से 15 सैनिकों को देश विद्रोह का दोषी मानते हुए कारावास की सजा सुनाई। इसमें सभी आरोपी नॉन कमीशंड अधिकारी (एनसीओ) हैं। इन पर आर्मी एक्ट की धारा 37 के तहत आरोप तय किए गए हैं।
इनमें अन्य के साथ डीलिंग, साजिश और विद्रोह जैसे मामले भी शामिल हैं। इन लोगों में सात को दस सालों की कड़ी सजा सुनाई गई है। जबकि छह लोगों को सात सालों की कड़ी सजा का ऐलान किया गया है।
जवानों के परिवार का कहना है कि अधिकारियों को कोई सजा नहीं मिली लेकिन जवानों को इतनी बड़ी सजा हो गई। उनका परिवार बिखर गया है। उनकी इज्जत दांव पर लग गई है। जवानों के परिजनों ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को इस बावत एक याचिका भी सौंपी है।
रक्षा मंत्री ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वे खुद इस मामले की जांच करेंगे। विरोध में हिस्सा लेने वाली एक जवान की छोटी बहन किरण रौतेला ने अपना दर्द बयां किया। उसने मांग की है कि अगर जांच हो रही है तो सही ढंग से हो।
वो अधिकारी हैं तो उन्हें कोई सजा नहीं मिलती और जवानों को बेगुनाह होनी की सजा मिल रही है। ये कैसा इंसाफ है। हम लोग 10 से धरने पर बैठेंगे। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने साफ किया कि सेना के जवान और अधिकारी दोनों के खिलाफ ही कार्रवाई की जाएगी।
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